हनुमान जयंती
Hanuman Jayanti
हनुमान सेवा और भक्ति के सर्वोच्च आदर्श हैं। ये राम के अनन्य भक्त थे पर स्वयं को श्रीराम का सेवक ही मानते थे ।
श्री हनुमान का वनचर जाति में जन्म हुआ था। पिता का नाम केसरी और माता का नाम अंजना था। इनका रूप वानर स्वरूप है किंतु ये साक्षात भगवान् शिव के अवतार थे। वानर रूप श्रीराम की सेवार्थ ही धरा था। पुराणों के अनुसार इन्हें वायु देवता का औरसपुत्र माना जाता है।
श्री हनुमान आजीवन ब्रह्मचारी रहे। इनमें तेज, शक्ति, विनय, पुरुषार्थ, बुद्धि और पराक्रम नित्य विद्यमान हैं। श्री हनुमान का शरीर वज्र के समान कठोर और इनकी गति गरुड़ के समान तीव्र मानी जाती है। हनुमान सदा अजेय रहे हैं। इन्हें अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त थीं। इन्हें संगीतशास्त्र का प्रवर्तक भी कहा जाता है। यही नहीं ये चारों वेद, व्याकरण, कल्प, छंद और ज्योतिष के मर्मज्ञ माने जाते हैं।
श्रीराम का चरित्र तो पावन था ही हनुमान का चरित्र भी पावन था, अत्यन्त पवित्र था। इनकी निष्काम सेवा, रामभक्ति इतनी आदर्श मानी जाती है कि राम के भक्त को पहले हनुमान का स्मरण करना पड़ता है। कहते हैं हनुमान का स्मरण किये बिना राम प्रसन्न नहीं होते और राम का स्मरण किये बिना हनुमान प्रसन्न नहीं होते।
लक्ष्मण द्वारा एक बार यह प्रश्न किये जाने पर कि ‘क्या राम तुम्हारे हृदय में भी बैठे हैं?’ हनुमान ने तुरंत अपना सीना चीरकर दिखा दिया। वहाँ श्रीराम व जानकी दोनों विद्यमान थे।
श्री हनुमान अतुलित बलशाली थे। इन्होंने हर काल, हर युग में अपना पराक्रम दिखाया है। केवल त्रेता युग में ही नहीं द्वापर युग में भी इनके पराक्रम के दृष्टांत मौजूद हैं। महाभारत में कथा है कि एक बार हनुमान गन्धमादन पर्वत पर कदलीवन में विश्राम कर रहे थे तब इनकी पूँछ मार्ग में फैली पड़ी थी। उधर से भीम का आगमन हुआ। भीम ने हनुमान की पूँछ को मार्ग में हटाने के लिए अपना सारा बल लगा दिया पर हनुमान की पूँछ टस से मस नहीं हुई। कहते हैं हनुमान के इस प्रयास ने भीम के इस गर्व को तोड़ दिया कि मुझ जैसा बलशाली कोई और नहीं। इसी प्रकार युग में श्रीराम द्वारा ‘रामसेतु’ का निर्माण हुआ था। अर्जुन ने उस सेतु की आलोचना करते हुए ‘शर-सेतु’ तीरों से निर्मित किया। अर्जुन ऐसा करके अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहते थे। उनके इस अहंकार को भी हनुमान ने तोड़ा। हनुमानजी के पग रखते ही सेतु भंग हो गया ।
संत तुलसीदास ने ‘हनुमान अष्टक’ लिखकर सिद्ध किया कि हनुमान संकटमोचक हैं। उन्होंने आठ ऐसे प्रसंगों की चर्चा की है जिनमें श्रीराम पर आए संकट तक को दूर करने में हनुमान का योगदान रहा। तुलसीदास ने लिखा, ‘को नहिं जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो ।’ इसीलिए आज भी हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग संकट आने पर अथवा संकटों से बचे रहने के लिए इस हनुमान अष्टक का ही नियमित पाठ करते हैं। हनुमान की भक्ति और आराधना करते हैं।
अतुलित बलशाली हनुमान शरीर से वज्र समान कठोर थे पर मन और हृदय से पुष्प समान कोमल !
ऐसे हनुमान को जो सच्चरित्र थे। अपने बल और पराक्रम पर कभी जिन्होंने गर्व नहीं किया। अपनी शक्ति का झूठा प्रदर्शन नहीं किया। वे अच्छे संगठक थे। पूरी वानर सेना का संचालन इतनी कुशलतापूर्वक किया । ऐसे रामसेवक की जयन्ती धूम-धाम से मनाई जानी चाहिए। उनके गुणों से प्रेरणा लें। श्रीराम के ऐसे भक्त श्री हनुमान सचमुच वंदनीय हैं।
कैसे मनाएं हनुमान जयन्ती
How to celebrate Hanuman Jayanti
- आयोजन स्थल को सजाएँ।
- हनुमान व राम-सीता की तस्वीर लगाएँ ।
- माल्यार्पण कर दीप व अगरबत्ती जलाएँ ।
- हनुमान और राम के प्रसंगों को रामायण में से चुनकर विद्यार्थियों को सुनाएँ ।
- हनुमान चालीसा व हनुमान अष्टक का संगीतमय पाठ किया जाए।
- राम और हनुमान के प्रसंगों को नाट्य रूप में पेश किया जाए।
- तुलसीदासजी ने रामायण में हनुमान के प्रति बहुत सुंदर भाव प्रकट किए हैं, उन्हें पोस्टरों पर लिखकर पाठशाला में लगाया जाए।
- हनुमान रामभक्त थे। राम के दास के रूप में रहे। हनुमान एक श्रेष्ठ मित्र थे । स्वामीभक्त थे। वीर और साहसी अर्थात् महाबली थे। उनके इन गुणों को बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जाए।
- अन्त में हनुमान की आरती संगीत के साथ प्रस्तुत की जाए। प्रयास रहे कि सभी विद्यार्थी गाएँ।