Hindi Moral Story Essay on “बातूनी का अंत बुरा”, Batuni ka Ant Bura” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

बातूनी का अंत बुरा

Batuni ka Ant Bura

किसी तालाब में एक कछुआ रहता था। उसी तलाब में दो हंस तैरने के लिए उतरते थे। हंस बहुत हँसमुख और मिलनसार थे। कछुए और उनमें दोस्ती होते देर न लगी। हंसों को कछुए का धीमे-धीमे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगा। हंस बहुत ज्ञानी भी थे। वे कछुए को अद्भुत बातें बताते। ऋषि-मुनियों की कहानियाँ सुनाते। हंस तो दूर- दूर तक घूमकर आते थे, इसलिए दूसरी जगहों की अनोखी बातें कछुए को बताते। कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता। बाकी तो सब ठीक था, पर कछुए को बीच में टोका-टाकी करने की बहुत आदत थी। अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानते थे। उन तीनों की घनिष्टता बढ़ती गई और दिन गुजरते गए।

एक बार सूखा पड़ा। बरसात के मौसम में भी एक बूँद पानी नहीं बरसा। उस तालाब का पानी सूखने लगा। प्राणी मरने लगे, मछलियाँ तो तड़प-तड़पकर मर गईं। तालाब का पानी और तेजी से सूखने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि तालाब में खाली कीचड़ रह गया। कछुआ संकट में पड़ गया। जीवन- मरण का प्रश्न खड़ा हो गया। वहीं पड़ा रहता तो उसका अंत निश्चित था। हंस अपने मित्र पर आए संकट को दूर करने का उपाय सोचने लगे। वे अपने मित्र कछुए को ढाढ़स देते। हंस केवल झूठा दिलासा नहीं दे रहे थे। वे दूर-दूर तक उड़कर समस्या का हल ढूँढ़ते। एक दिन लौटकर हंसों ने कहा, “मित्र, यहाँ से पचास कोस दूर एक झील है। उसमें काफी पानी है। तुम वहाँ मजे से रहोगे।”

कछुआ रोनी आवाज में बोला, “पचास कोस? इतनी दूर जाने में मुझे महीनों लगेंगे। तब तक तो मैं मर जाऊँगा।”

कछुए की बात भी ठीक थी। हंसों ने अक्ल लड़ाई और एक तरीका सोच निकाला।

वे एक लकड़ी उठाकर लाए और बोले, “मित्र, हम दोनों अपनी चोंच में इस लकड़ी के सिरे पकड़कर एक साथ उड़ेंगे। तुम इस लकड़ी को बीच में से मुँह से थामे रहना। इस प्रकार हम तुम्हें उस झील तक पहुँचा देंगे। उसके बाद तुम्हें कोई चिंता नहीं रहेगी।”

उन्होंने चेतावनी दी, “पर याद रखना, उड़ान के दौरान अपना मुँह मत खोलना, वरना गिर पड़ोगे ।”

कछुए ने हामी में सिर हिलाया। बस, लकड़ी पकड़कर हंस उड़ चले। वे एक कस्बे के ऊपर से उड़ रहे थे कि नीचे खड़े लोगों ने आकाश में अद्भुत नजारा देखा। सब एक-दूसरे को ऊपर आकाश का दृश्य दिखाने लगे। लोग दौड़-दौड़कर अपने छज्जों पर निकल आए। कुछ अपने मकानों की छतों की ओर दौड़े। बच्चे, बूढ़े, औरतें व जवान सब ऊपर देखने लगे। खूब शोर मचा। कछुए की नजर नीचे उन लोगों पर पड़ी।

उसे आश्चर्य हुआ कि उन्हें इतने लोग देख रहे हैं। वह अपने मित्रों की चेतावनी भूल गया और चिल्लाया, “देखो, कितने लोग हमें देख रहे हैं!” मुँह खुलते ही वह नीचे गिर पड़ा। उसकी हड्डी-पसली का भी पता नहीं चला।

सीख : बेमौके मुँह खोलना बहुत महँगा पड़ता है।

 

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