आचार्य नरेंद्रदेव
Narendra Deva
सिद्धांतवादी
जन्म: 31 अक्टूबर 1889, सीतापुर
मृत्यु: 19 फरवरी 1956, इरोड
- महान् शिक्षाविद् और प्रजातांत्रिक समाजवाद के प्रवर्तक नरेंद्रदेव के पिता प्रतिष्ठित वकील और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। दस वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपने पिता के साथ कांग्रेस के लखनऊ सम्मेलन में भाग लिया। जल्दी ही वे उग्रवाद की ओर झुक गए और तिलक, अरविंद तथा हरदयाल जैसे राष्ट्रवादियों से राजनीति का ज्ञान लेने लगे।
- एम.ए. की पढ़ाई पूरी करके, उन्होंने वकालत की शिक्षा प्राप्त की। सन् 1913 तक वे वकालत में स्थापित हो चुके थे, परंतु युवा नरेंद्र का मन देश को भूलने वाला नहीं था।
- उन्होंने ऐनी बेसेन्ट के होमरूल आंदोलन में जोर-शोर से भाग लिया। उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी और पूरे जोश के साथ राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए।
- सन 1921 में वे शिवप्रसाद गुप्त की काशी विद्यापीठ से जुड़ गए। उसमें बहुत से सुधार करके उसका इस्तेमाल वे राष्ट्रीय आंदोलन के अकादमिक कार्यों को पूरा करने में करने लगे।
- सन् 1926 में वह उसके प्राचार्य बने और तभी उन्हें ‘आचार्य’ की उपाधि से मंडित किया गया। आचार्य ने अपने सिद्धांतों के आधार पर नई समाजवादी पार्टी बनाई।
- सन् 1934 में वह उसके अध्यक्ष बने। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के अध्यक्ष रहे। समाजवाद को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने किसान सभा’ की स्थापना की।
- युवकों में समाजवादी चेतना जागृत करने हेतु ‘समाजवादी युवक सभा’ का गठन किया। अपने आकर्षक व्यक्तित्व और प्रजातांत्रिक समाजवाद की स्पष्ट सोच से वे चीन के साथ भारतीय संबंधों को मधुर बनाने में बहुत सफल रहे।
- लखनऊ और बनारस विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में उन्होंने शिक्षा व ज्ञान के भूमंडलीकरण, ज्ञान व संस्कृति के एकीकरण पर जोर दिया।
- वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। अभिधान कोश का फ्रेंच अनुवाद तथा उनकी मृत्यु पश्चात् प्रकाशित ‘बुद्ध धर्म दर्शन’ जैसी पुस्तकें उनके ज्ञान की प्रत्यक्ष साक्षी हैं।
- दमा से पीड़ित होने के बावजूद आचार्य ने सन् 1954 में प्रजा समाजवादी पार्टी का नेतृत्व किया। 10 फरवरी 1956 को उनके जीवन का अंत हो गया।