कोटा शिवराम कारंथो
Kota Shivarama Karanth
जन्म: 10 अक्टूबर 1902, सालिग्राम
मृत्यु: 9 दिसंबर 1997, मणिपाली
- के. शिवराम कारंत का जन्म मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- उनके पिता शेष कारंत स्कूल में अध्यापक थे। बाद में वे कपड़े का व्यवसाय करने लगे थे।
- शिवराम एक बहन और आठ भाइयों में से एक थे।
- स्कूल के वातावरण में वे बहुत बंधन महसूस करते थे।
- सन् 1921 में गांधीजी के आह्वान पर कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। वे जन्मजात विद्रोही प्रवृत्ति के रहे। वे प्रकाशक भी रहे।
- देशप्रेम, स्वदेशी प्रचार, व्यापार, पत्रकारिता, अध्यात्म साधना, फोटोग्राफी, नाटक, नृत्य, चित्रकला, वास्तुकला, संगीत, सिनेमा, समाज-सुधार, ग्रामोद्धार, शिक्षा के नए प्रयोग – ये सब उनके कार्यक्षेत्र रहे।
- उन्होंने शब्दकोश, विश्वकोश, यात्रावृत्तांत, संगीत रूपक, निबंध, कहानी और एकांकी सभी लिखे।
- उनकी मुख्य पहचान उपन्यासकार के रूप में की जाती है। उनकी लगभग 200 प्रकाशित कृतियों में 39 उपन्यास हैं। उन्होंने तटीय कर्नाटक के अनूठे लोक नृत्यनाट्य यक्षगान’ पर शोध किया।
- उन्होंने नौ-नौ घण्टे के मूल लोक नाटकों के स्थान पर दो-दो घण्टे के नृत्य नाटक रखे, भाषा-सीमा के परिहार में संवादों को हटा दिया।
- उनके उपन्यास ‘मूकज्जिय कनसुगलु’ के लिए सन् 1977 का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।