स्वामी अखंडानंद सरस्वती जी महाराज
Swami Akhandanand Saraswati ji Maharaj
जन्म : 25 जुलाई, 1911
वाराणसी (उ. प्र.)
- पितामह की प्रार्थना के ठीक नौ मास पूर्ण होने के दिन बज के ठाकुर श्री शान्तनुविहारीजी की कृपा से भारतवर्ष के पवित्रतम वाराणसी मण्डल के महराई नामक ग्राम में, सरयूपारीण ब्राह्मण वंश में महाराजश्री का जन्म हुआ।
- बड़े-बड़े ज्योतिषशास्त्रियों ने महाराजश्री की उम्र मात्र 19 वर्ष बताई।
- मृत्यु का भय महाराजश्री को आध्यात्म के मार्ग की ओर ले आया।
- सभी संत महापुरुषों ने स्पष्ट कहा कि प्रारब्ध से प्राप्त मृत्यु से बचने का उपाय तो हम नहीं कर सकते, किन्तु ऐसा ज्ञान दे सकते हैं जिससे मृत्यु की विभीषिका सर्वदा के लिए मिट जाए। वस्तुतः ऐसा ही हुआ।
- महाराजश्री ने ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी श्री ब्रहमानंद जी सरस्वती से संन्यास-दीक्षा ग्रहण की।
- संन्यास से पूर्व गोरखपुर में कल्याण’ के सम्पादक मण्डल में महाराजश्री सात वर्ष तक रहे।
- उन्होंने अपने जीनकाल में कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की।
- महाराजश्री के जीवन में प्रत्यक्ष दीखता था कि चाहे कोई किसी भी सम्प्रदाय का हो, मूर्ख हो या विद्वान, स्त्री या पुरुष बालक हो या वृद्ध, निर्धन हो या धनी, सबके प्रति आपका समान प्रेम था।
- महाराजश्री ने वृंदावन धाम में ‘आनंद-वृंदावन आश्रम’ की स्थापना की, जहाँ कर्म, भक्ति और ज्ञान का संगम है।
- महाराजश्री 19 नवम्बर, 1987 मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी, प्रातः दो बजे के करीब अर्थात् ब्रह्मबेला में व्यष्टि प्राण समष्टि प्राण से एक हो, सर्वव्यापक हो गए।