साम्राज्यवाद की समस्या
Samrajyawad Ki Samasya
साम्राज्यवादी देशों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित देशों का आर्थिक पिछड़ापन साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का सबसे महत्त्वपूर्ण और स्थाई परिणाम है। साम्राज्यवाद के कारण इन देशों के स्थानीय उद्योग नष्ट हो गए। उदाहरण के लिए, भारत सदियों तक वस्त्रों का निर्यात करता रहा था। साम्राज्यवादी शासन के काल में भारत का देशी वस्त्र उद्योग नष्ट हो गया और वह ब्रिटिश वस्त्र का आयातकर्ता बन गया। इन सभी देशों के प्राकृतिक संसाधन साम्राज्यवादी देशों के नियंत्रण में आ गए और वे अपने लाभ के लिए उनका दोहन करने लगे। इन देशों का उद्योगीकरण नहीं हो सका। इन देशों में कुछ उद्योग आरंभ किए गए परंतु वे साम्राज्यवादी देशों के उद्योगों के हितों के अधीन कर दिए गए फिर उनकी कंपनियों के लिए मुनाफा कमाने के लिए ही स्थापित किए गए। उपनिवेशों में स्थापित आधुनिक उद्योगों का वहाँ की जनता के जीवन पर कम ही प्रभाव पड़ा। साम्राज्यवादी देशों के उद्योगों की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए उपनिवेशों में खेती के ढरें बदल दिए गए। कुछ देशों की पूरी खेती को एक-दो फसल उगाने तक ही सीमित कर दिया गया। उदाहरण के लिए क्यूबा मात्र चीनी का उत्पादक होकर रह गया, इसके अलावा शायद ही उसके पास कुछ और रहा। प्राकृतिक संसाधनों को खुले आम लूटा गया और भारी लगान तथा कर लगाकर उनका शोषण किया गया। उपनिवेशों और दूसरे गैर-औद्योगिक देशों की जनता की निर्धनता साम्राज्यवाद का ऐसा परिणाम है जो अभी भी जारी है।
साम्राज्यवाद ने जातीय दंभ और भेदभाव को भी जन्म दिया। साम्राज्यवादी देशों में यह विचार फैलाया गया कि गोरी जाति श्रेष्ठ है और उसे ईश्वर ने दुनिया पर शासन करने के लिए पैदा किया है। इन उपनिवेशों में गोरे शासकों और बसने वालों ने स्थानीय निवासियों के साथ भेद-भाव किया और उन्हें अपने से हीन समझा। अधिकांश पूरोपीय उपनिवेशों में स्थानीय जनता के साथ मेल-जोल नहीं रखा गया तथा युरोपीय अपने लिए आरक्षित क्षेत्रों में रहते रहे। नस्लवाद का सबसे बुरा उदाहरण दक्षिण अफ्रीका था, जहाँ गोरों और कालो का परस्पर मेल-जोल अपराध था।