अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा
English Madhyan se Shiksha
कहने को तो आज शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भी है लेकिन हिंदी माध्यम से पढ़ने वालों छात्रों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वालों के मुकाबिले बेहद कम महत्त्व दिया जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आधुनिक शिक्षा पद्धति के जन्मदाता हमारे अंग्रेज शासक थे। उन्होंने स्वार्थ के लिए नई व्यवस्था अपनाई थी। वे छोटे लोगों को कम पद और कम वेतन देकर अपने साम्राज्य का विस्तार चाहते थे। इसलिए उन्होंने भारतीयों को अपने तरीके से अपनी गर्ज के लिए शिक्षित करना शुरू किया और उन्हें जिस भाषा में शिक्षा दी जाने लगी वह थी अंग्रेजी। दूसरे शब्दों में अंग्रेज भारतीयों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देते थे। इसकी वजह यह थी वे हिंदी को असभ्य और गुलाम भारतीयों की भाषा मानते थे। स्वतंत्रता के बाद जब हिंदी देश की राष्ट्रभाषा बनी तब हिंदी प्रेमी राज नेताओं ने हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने की मांग उठाई। लेकिन सत्ता पर सरकारी दफ्तरों पर और निजी संस्थाओं पर अंग्रेजी का बोलबाला था, इसलिए कथित हिंदी प्रेमी नेताओं की बात अनसुनी कर दी। जब हिंदी के लिए जन आन्दोलन छिड़ा तब हिंदी को शिक्षा का माध्यम तो स्वीकार कर लिया गया पर अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा उत्तीर्ण करने वालो छात्रों की वरीयता दी गई। हिंदी माध्यम से पढने वाले छात्रों को गँवार और जाहिल समझा जाने लगा। आज अनेक विद्यालयों व विश्वविद्यालयों में शिक्षा का माध्यम हिंदी भी है पर अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा दिलाना पंसद करते हैं। उनकी दृष्टि में हिंदी में वह कौशल नहीं है जो विज्ञान विषय, वाणिज्य विषय, इंजीनियरिंग विषय और खगोल आदि विषयों में शिक्षा दी जा सके। उनकी बात विज्ञान संकाय मे उच्च शिक्षा के संदर्भ में तो उचित मानी जा सकती है लेकिन आज वाणिज्य और कला विषय हिंदी माध्यम में पढ़ाए जा रहे हैं लेकिन उनमें छात्रों की संख्या बहुत कम होती है। छात्रों का झकाव भी अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने की ओर है। लेकिन भारत सरकार ने इस विषय पर अथक श्रम किया है। और प्रत्येक अंग्रेजी शब्द के लिए हिंदी शब्द खोज निकाला है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अगर छात्र चाहे तो हिंदी माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर सकता है। इस संदर्भ में मेरा कहना यह है कि अगर शिक्षा मातृभाषा में दी जाए तो उसे छात्र अधिक सरलता से ग्रहण कर सकते हैं क्योंकि इस भाषा से वह जन्म से ही परिचित होता है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने की दिशा में बच्चों को उत्साहित करना चाहिए। मातृभाषा में शिक्षा अंग्रेजी माध्यम की कमी को पूरा करेगी।