त्योहारों के नाम पर फिज़ूलखर्ची
Tyoharo ke Naam Par Fizulkharchi
भारत त्योहारों का देश है। अगर पंचांग खोलकर देखा जाए तो देश में प्रतिदिन कोई न कोई त्योहार है जैसे-दीपावली. दशहरा. होली. रक्षाबन्धन, बैसाखी, ईद, ओणम, बिह, गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा, राम नवमी, 26 जनवरी, पन्द्रह अगस्त आदि। सभी त्योहारों में भारतीय अधिक उल्लास में अपनी औकात से ज्यादा खर्च करते हैं। त्योहार निकलने पर एक-दूसरे से अपना दुखड़ा रोते हैं, इस बार त्योहार पर इतना खर्च हो गया कि दो महीने कड़की में काटने होंगे। आपने लोगों को यह कहते सुना होगा कि अबकि बार तो ऐसी दीवाली आई कि घर का दीवाला निकाल कर चली गई। जब आप किसी से ऐसी बात सुनते हैं तो समझो कि इस परिवार अथवा व्यापारी ने दीवाली पर अनाप-शनाप खर्च किया है और अब पछता रहा है। दीवाली खुशियों का त्योहार है। लक्ष्मी की पूजा का पर्व है। लेकिन जिन लोगों को बाज़ार में खरीदारी करनी नहीं आती. वे इस त्योहार पर गैरज़रूरी चीजें खरीद कर पूरे महीने का बजट बिगाड़ देते हैं। कुछ लोग दीवाली पर जुआ खेलना शुभ मानते हैं। इस खेल में करोड़पति खाकपति हो जाता है। कुछ दिखावे के लिए त्योहारों पर हजारों रुपए की आतिशबाजी करते हैं। आतिशबाजी भी महँगी लाई जाती हैं। गुरुनानक जन्म दिन, दशहरा और दीवाली पर तो आतिशबाजी आम बात है। इन त्योहारों पर आसमान पर आधी रात के बाद तक बम फूटते सुने जा सकते हैं। इस कारण टीबी के मरीज परेशान होते हैं। पर्यावरण दूषित होता है। दिखावा तो इतना है कि जिस क्लर्क की सात हज़ार तनख्वाह है वह भी डाई फ्रट का गिफ्ट अपने मित्रों को देने के लिए जाता है। 26 जनवरी पर सेना की परेड और झाँकियाँ निकालने पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। यह धन निर्धन लोगों की सहायता के लिए व्यय किया जा सकता है। इसी प्रकार अनेक त्योहारों पर लोग शराब पीते हैं तथा जुआ खेलते हैं। त्योहारों के नाम पर इस प्रकार के अनैतिक कार्य उचित नहीं कहे जा सकते। वस्तुतः हमें इस सम्बन्ध में अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहिए।