भोजन पर सबका अधिकार
Bhojan Par Sabka Adhikar
भारत की जनता को उसी तरह भोजन पर अधिकार मिलना चाहिए जैसे विश्व क बहुत-स देशों के नागरिकों को प्राप्त है। ऐसा नहीं है कि भारत सरकार ऐसा करने में सक्षम नहीं है, सक्षम ता ह शक्ति का अभाव है। अगर सरकार अरबों रुपए देश की विलाससंबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए खच तो भोजन पर सबका अधिकार’ योजनाबद्ध तरीके से लग क्यों नहीं कर सकती? क्यों नही भारतीया का भरण-पापण आधकार का सवैधानिक अधिकार बना देती? निर्धन भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है लेकिन साधन सपन्न लागा की प्रति व्यक्ति आय बेहिसाब है। इस देश के नेताओं को घोटालों, भ्रष्टाचार, व्याभिचार, जमाखोरी भ्रष्टाचार करने स फुसत नहा ह, व भाजन पर सबका अधिकार की व्यवस्था कैसे कर सकेंगे? यह देश की विडंबना है कि मुट्ठीभर लांगा क पास अकूत संपत्ति है जबकि शेष भूख के कारण दम तोड़ रहे हैं। नेताओं की कथनी अवश्य है कि हमने भारत में सबको भोजन का आधकार दिया है लेकिन करनी इसके विपरीत है। अनेक राज्यों में गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को एक रुपए किला आटा व दो रुपए किलो चावल मिलता है। मनरेगा के अन्तर्गत लोगों को वर्ष में सौ दिन काम मिलता है। इसके बाद भी देश में गरीब भूखे मरते हैं। योजनाएँ तो अच्छी हैं। ठीक से लागू नहीं होती। पहले राशन बनवाने के लिए लाइन लगानी पड़ती हैं, फिर राशन लेने के लिए लाइन। बहुत लोगों को वह तब भी नहीं मिल पाता। अतः सरकार को यह यकाना बनाना होगा कि भारत का एक भी व्यक्ति भूखा न सोए। यह तभी संभव है जब भोजन पर सबका अधिकार’ योजनाबद्ध तरीके से लागू किया जाए।
किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई को परिणति, उसके पली-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-कूटी जाती; पर उसके पति ने उसे कभी उँगलती भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अंगठा दिखा दिया। काम वही करती थी, इसलिए गाय-भैस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के सम्बन्ध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था।