महँगाई की मार
Mehangai Ki Maar
इस समय देश में कमरतोड़ महँगाई है। जीवन-रक्षक वस्तुओं की निरन्तर कीमत बढ़ रही है। जीवन के आवश्यक तत्त्व हैं-रोटी, कपड़ा और मकान। इनसे भी साधारण व्यक्ति दूर होता जा रहा है। उसे समझ नहीं आ रहा है कितना अर्जित करूँ कि दो समय भोजन, तन ढकने के लिए वस्त्र और रहने को साधारण ही सही मकान मिल जाए। अमीर लोगों के लिए महंगाई नहीं है गरीबों के लिए है। गरीवी इतनी है कि देसी घी तो आँख में लगाने के लिए भी नहीं है।
महँगाई अमीरों का कुछ नहीं बिगाड़ती। वे हर तरह की महँगाई में जीना जानते हैं क्योंकि पूरी तरह संपन्न होते हैं। अरहर की दाल चाहे 200 रुपए किलो क्यों न बिके, उन पर कोई असर नहीं पड़ता। मकान का किराया चाहे दस हजार रुपए महीने क्यों न हो जाए, दे देंगे, पर महँगाई जब बढ़ती है तो यह मजदूरों, किसानों और अन्य मध्यवर्गीय लोगों को निशाना बनाती है। इसलिए महँगाई की मार यही वर्ग सबसे ज्यादा झेलता है। आज मजदूर की दैनिक दिहाड़ी तीन सौ से चार सौ रुपए प्रतिदिन है। उसे परे महीने में मुश्किल से दस-बारह दिन काम मिल पाना है। छह-सात हजार रुपए महीने में वे अपने परिवार का संचालन कैसे कर सकता है? जब पाँच हजार रुपए महीना उसे केवल किराए के मकान में रहने के लिए खर्च करने पड़ते हैं। वह कपड़े चाहे साल में दो-तीन बार सिलवाए, या एक बार ही सिलवाए। पर अपने बच्चे को तो उसे रोटी देनी ही होगी। आज गरीब से गरीब परिवार का रसोई का खर्च कम से कम पाँच हजार रुपए महीने है। ऐसे लोगों का अभाव नहीं है जो इतना भी नहीं कमा पाते। सरकार की ओर से गरीबों के भले के लिए प्रयास अवश्य होते हैं पर उनके हिस्सों को भी साधनसंपन्न डकार जाते हैं। न तो वे अपने बच्चों को शिक्षित कर पाते हैं और न ही अपना रहन-सहन ठीक कर पाते हैं। कुछ तो महंगाई के तले दब कर दम तोड़ जाते हैं। सरकार अगर आर्थिक कारणों को खत्म करने में कामयाब हो जाए और खास तौर से इन गरीबों को रोजगार की गारंटी दे दे, अमीरों को इनका शोषण करने से रोक दे तो इनकी हालत में कुछ सुधार आ सकता है। इसके अलावा सरकार अगर खाद्य जिन्सों की दर तय कर दे कि इससे अधिक कोई ले नहीं सकता और अगर लेता है तो कही सजा का हकदार होगा तो इस भारी महँगाई में गरीब जिंदा रह सकते हैं।
महंगाई के मित्र हैं कालाधन, तस्करी और जमाखोरी। तस्कर खुले आम व्यापार करता है, काला धन जीवन का प्रमुख अंग बन चुका है। काला धन मुद्रा स्फिीति और रोजगार के अवसर कम कर देता है। गरीबों को रोजगार नहीं मिल पाता, परिणामत: उनकी बढ़ती महंगाई से लड़ने की शक्ति घटती चली जाती है। देश में कितनी बीमार मिले हैं, कई सौ करोड़ के उद्योग धंधे खत्म हो चुके हैं। अरबों रुपए के घोटाले हो रहे हैं। नौकरशाही में रिश्वतखोरी का साम्राज्य है। बेईमान ठेकेदारों ने अपने घर भरने के तरीके खोजे हुए हैं। जिस देश में अधिकारी-नेता नोट छापते जाएँ उस देश में बढ़ती महँगाई कोई नहीं रोक सकता। अगर सरकार सचमुच महँगाई कम करना चाहती है तो कालाबाजारी पर अंकुश लगाना पड़ेगा। तभी यह रुक सकती है।