मेरे शहर में प्रदूषण
Mere Shahar me Pradushan
मेरा शहर दिल्ली है। यह देश की राजधानी है। हर कोई इस शहर में रहने के सपने देखता है। लेकिन बाहर रहने वालों को यह शायद मालूम नहीं है जिस राजधानी दिल्ली में रहने के वे मन्सूबे पाले हुए हैं वहाँ दो दिन के लिए भी आ जाओ तो नाक बंद कर बाहर निकलना पड़ेगा। आज भी पुरानी दिल्ली में ऐसे मकान हैं जिनमें रहने वालों को कभी सूरज के दर्शन नहीं हुए। वे सीलनभरे मकान में रह रहे हैं। शाम के वक्त इतना वायु प्रदूषण होता है कि फतेहपुरी के पेड़ काले पड़ जाते हैं। दिनभर सड़कों पर दौडती असंख्य गाड़ियाँ न केवल ध्वनि प्रदूषण फैलाती हैं बल्कि वायू प्रदूषण भी फैलाती हैं। दिल्ली वासी यमुना का जल पीते हैं। यमुना को देखोगे तो काली नज़र आएगी। यहाँ के लोग प्रदूषित जल पीने के लिए विवश हैं। झुग्गी-झोंपड़ी में जो आबादी रह रही है वह कुपोषण की शिकार है। पीलिया, दस्त, उलटी अतिसार आदि की शिकायत यहाँ के लोगों को आम है। यहाँ चलने वाले वाहन जो प्रदूषण फैलाते हैं उनसे बचना मुश्किल हो जाता है। इस कारण रक्तचाप, मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन दिल्ली वासियों में आम देखा जा रहा है। अगर मेरे शहर को प्रदूषण से बचाना है तो बढ़ती आबादी पर रोक लगानी होगी। दिल्ली सरकार को प्राथमिक स्तर पर प्रदूषण फैलने वाले वाहनों पर रोक लगानी होगी। सफाई-व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त बनानी होगी। हर दिन एंटिकबायेटिक दवाओं का इस्तेमाल करना होगा। ज्यादा हरियाली लगानी होगी तब जाकर दिल्ली रहने लायक हो पाएगी।