बोले सो मारा जाय
Bolo So Mara Jaye
एक राजकुमार ने अपने पिता की मृत्यु के बाद एक दिन अपने बद्धिमान मन्त्री से कहा, “आप मुझे कोई सीख दीजिए और मेरे दोष बतलाइए।”
मंत्री ने बतलाया, “चुप से सब काम बन जाते हैं, इसमें बड़ी भलाई है। बोलनेवाला मारा जाता है, तकलीफ उठाता है, अतः मैं आपके अवगुण नहीं कहूंगा। कहने से मुझे नुकसान ही होगा। दूसरे हितस्य श्रोता वक्ता च दुर्लभः’हित की सुनने और कहनेवाले भी बहुत थोड़े होते हैं, क्योंकि ‘हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।’-हित की हो और मन को सुहानेवाली हो, दोनों बातों का मेल मुश्किल से मिलता है।”
मंत्री ने अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी अच्छी सीख दी, पर राजकुमार को इससे संतोष न हुआ। संभव है, वह इस बात का उम्मीदवार रहा हो कि मंत्री अवगुण न बताकर उसके गुण बतलाएगा। कहेगा, “आप में और अवगण! आप तो प्रत्यक्ष गुणनिधि हैं।” मंत्री बुद्धिमान था, पर खुशामदी नहीं।
एक दिन राजकुमार मंत्री को साथ लेकर आखेट को गया। दिन भर हैरान होकर भी कोई शिकार हाथ न लगा। सांझ होने पर लौटने के समय झाड़ी में एक तीतर बोला। राजकुमार ने आवाज के अंदाज पर तीतर मारा। तीतर ढेर हा गया। मंत्री बोला, “मूर्ख, न बोलता, न मारा जाता।”