जिसकी लाठी उसकी भैंस
Jiski Lathi Uski Bhains
हिन्दी में यह कहावत खूब प्रचलित है। बंगाल में है “जोर जार मुल्लुक तार”, “जार लाठी तार माटी (धरती)।” अन्य भाषाओं में भी इस पर कई कहावतें हैं। इस कहावत को महाकवि अकबर ने एक शेर में बड़ी खूबसूरती से गूंथा है:
उन्हीं की भैंस है भाई, कि जिसकी लाठी है,
उन्हीं का गांव है अकबर, जो बन सके ठाकुर।
एक ब्राह्मण देवता ने कहीं जजमानी में एक अच्छी भैंस पाई। उसे लेकर वह घर को रवाना हुए। बीच में रास्ता दूर तक सुनसान था। वहां एक अहीर मिल गया। हाथ में उसके लम्बी लाठी थी और शरीर से भी वह अच्छा लम्बाचौड़ा था। उसने ब्राह्मण देवता से दो-चार इधर-उधर की बातें करने के बाद कहा, “देवता, यह भैंस तो मुझे दे दो।”
ब्राह्मण ने कहा, “क्यों भाई?” उसने कहा, “मैं क्यों-स्यों नहीं जानता। भैंस छोड़कर यहां से चुपचाप भाग जाओ, वरना भैंस तो जायगी ही, तुम्हारी खोपड़ी के भी टुकड़े होंगे।”
बाह्मण शारीरिक बल में अहीर से कम न था, लेकिन उसका हाथ खाली था। करे तो क्या करे? पर बुद्धिबल था उसमें।
बात बनाकर बोला, “भैंस ले भले ही लो, पर ब्राह्मण की चीज यों लेने से तम्हें पाप लगेगा। बदले में कुछ देकर भैंस लेते तो तुम पाप से बच जाते।”
अहीर ने कहा, “यहां मेरे पास देने को क्या धरा है?” ब्राह्मण ने कहा, “और कुछ न सही, लाठी से भैंस का बदला कर लो।”
अहीर खुश हुआ। लाठी ब्राह्मण के हाथ में पकड़ा दी और भैंस पर दोनों हाथ रखकर खड़ा हो गया। ब्राह्मण ने कड़ककर कहा, “चल हट भैंस के पास से, नहीं तो खोपड़ी अभी दो होती है।”
अहीर ने पूछा, “क्यों?”. ब्राह्मण बोला, “क्यों के क्या मानी? जिसकी लाठी उसकी भैंस।”
अहीर ने अपनी बेवकूफी समझी और चुपचाप वहां से सरक गया। किसी ने सच कहा है, “बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, निर्बुद्धश्च कुतः बलं।”
-जिसमें अक्ल है, उसके पास ताकत है। बेअक्ल के पास ताकत कहां? संस्कृत में और भी कहा है : “धिक बलं क्षत्रिय बलं (शस्त्रबल), बलं ब्रह्मबलं (बुद्धि-बल) बलं।”