कैसे क्षत्रिय हैं?
Kaise Kshatriya Hai
एक नाई हजामत बनाने में जितना अनाडी था, उतना ही अशिष्ट बोली में भी था। हजामत बनाते समय उस्तरे से कहीं लग जाने पर-और उसके हाथ से कहीं-न-कहीं जरूर लगता था-कोई बोलता तो कहता, “क्या हुआ जी, लोग कितनी-कितनी चोटें सहते हैं, आप जरा सी कड़ी हजामत नहीं सह सकते?” सुननेवाला चुप हो जाता। सोचता, किसी तरह इससे पिंड छुटे। कौन इससे बकवास करे। एक दिन वह किसी क्षत्रिय की हजामत बना रहा था। उसने जरा संभालकर बनाने को कहा तो नाई छूटते ही बोला, “क्या क्षत्रिय हो जी, जरा-सा उस्तरा लग जाने से सिसकने लगे. रण में आप तेगों की मार कैसे सहते होंगे?”
ठाकुर ने कहा, “अच्छा बना, जैसे तेरे मन में आए।” उसने जैसी-तैसी हजामत बन जाने दी। फिर घर में से एक नुकीला सूजा लाकर नाई से कहा, “जरा अपना हाथ लाना।”
नाई ने अपना दाहिना हाथ सामने किया। क्षत्रिय ने बाएं हाथ से उसे पकड़ा और उसकी सीधी हथेली अपनी हथेली पर रखी और दाहिने हाथ से सूजे को इतने जोर से दबाया कि क्षत्रिय की हथेली को पार करता हुआ सूजा नाई की हथेली में घुस गया। नाई चिल्लाने लगा, “मरा रे, मैं मरा रे।”
क्षत्रिय ने कहा, “कैसा आदमी है जो एक साधारण सूजे के चुभने से हाय-तोबा करता है?”