कीमत तो दो आना रोज ही है
Kimat To Do Aana Roj Hi Hai
एक राजा ने किसी से सुना कि साहूकार लोग छोटी-बड़ी हर चीज की कीमत कृत सकते हैं। उसने मन्त्री से एक साहूकार को बुलवाने को कहा। साहूकार के आने पर उससे पूछा, “कहो, तुम हर चीज का मोल कर सकते हो?”
“अन्नदाता, चीज सामने होने पर कह सकता हूं।”
राजा की बगल में राजकुमार बैठा हुआ था। उसे दिखाकर राजा ने कहा, “अच्छा, इसका मोल बतलाओ।”
साहूकार बड़े असमंजस में पड़ गया। उसे अपने जीवन में बहुत चीजों की कीमत आंकने का काम पड़ा था, लेकिन आदमी की कीमत नहीं, और सो भी एक राजकुमार की। उसने विनती की, “धर्मावतार, बड़ा काम है यह, तुरत कैसे हो सकता है ? इसके लिए तो मुझे महीनेभर की मोहलत मिलनी चाहिए।”
“अच्छा जाओ, आज से तीसवें दिन आकर बताना। देखो, भूल न जाना।”
साहूकार अपने घर गया। पन्द्रह दिन तो यों ही कट गए। फिर उसने साथ के बैठनेवालों में चर्चा शुरू की। सब चक्कर में थे कि राजकुमार का क्या मोल बताया जाए? कम बताएं तो राजा नाराज हो जाएगा, ज्यादा बताएं तो कितना बताएं और राजा पूछ बैठे कि इतनी कीमत का आधार क्या है, तो फिर बगलें झांकनी पड़ेंगी, बेवकूफ बनना पड़ेगा। अबतक तो राजा बनियों को बड़ा होशियार मानता आया है, फिर तो राजा की दृष्टि में सारी साख ही जाती रहेगी।
इसी उधेड़-बुन में कई दिन और निकल गए। एक बूढ़े साहूकार ने सब मामला सुना। लोगों का संकट समझा। उसे अपनी सूझ पर पूर्ण विश्वास था। बोला, “आप लोग मुझे साथ ले चलिए, मैं राजकुमार की कीमत लगाऊंगा।” ठीक तीसवें दिन लोग उक्त वृद्ध साहूकार को लिये दरबार में पहुंचे। उसने राजा को बड़ी नम्रतापूर्वक प्रणाम किया। राजा ने कहा, “सेठ! हमारे राजकुमार की ठीक-ठीक कीमत आंको।”
“जो आज्ञा महाराज।” कहकर सेठ ने राजकुमार को खड़ा करवाया। सामने देखा, पीछे देखा, दोनों बगलों में अच्छी तरह देख-दिखाकर बोला, “अन्नदाता, दाम तो मैं ठीक लगा दूंगा, लेकिन कोई बुरा न माने।”
“इसमें बुरा मानने की क्या बात है?”
साहूकार ने अपना दाहिना अंगूठा राजकुमार के माथे में लगाते हुए कहा, “महाराज, इसका, यानी ललाट के लेख का तो कोई मोल हो नहीं सकता, और यों राजकुमार दो आने रोज का मजदूर है।”
राजा गुणग्राहक था। उसने साहूकार के कथन की बड़ी तारीफ की और मन में माना कि राजकुमार आज मजदूरी करने निकले तो दूसरे मजदूरों के हिसाब से दो आने से ज्यादा कैसे पायगा। सेठ ने ठीक ही कहा कि भाग्य का मोल नहीं हो सकता, वह अलग चीज है।
उन दिनों मजदूरी की दर सस्ती थी। आज दो आने को दो रुपया माना जा सकता है।