इक्के–दुक्के का अल्ला बेली
Ekke-Dukke ka Allah Beli
इस कहावत का अर्थ तो है कि अकेले-दुकेले का ईश्वर रक्षक है, पर इस पर एक खास कहानी है-
दिल्ली से दस मील दूर फरीदाबाद के पास एक नाला है। कभी वहां घनघोर वन था। फरीदन नाम की एक बुढ़िया वहीं बैठकर भीख मांगा करती। उसके बेटे पास के नाले में छिपे रहते। जब कोई इक्का-दुक्का मुसाफिर उधर से गुजरता तो बुढ़िया यह सदा लगाती-
“इक्के–दुक्के का अल्ला बेली।“
उसके डकैत बेटे समझ लेते कि कोई अकेला-दुकेला मुसाफिर है। बस नाले से निकलकर उसे लूट लेते। जब यात्री समूह में होते तो बुढ़िया पुकारती, “जमात में करामात है।” डकैत समझ जाते कि बहुत हैं। इसी तरह बहत दिनों तक उसका यह कारबार चलता रहा। लेकिन ऐसा चल कब तक सकता था? आखिर एक दिन उसके सब डाकू बेटे पकड़े गए। इस पर बुढिया को बड़ा पछतावा हुआ और अपने छली जीवन से उसे घृणा हो गई। अपने पास के पैसों से उसने नाले का पुल बंधवा दिया। बुढ़िया के नाम पर उस जगह का नाम फरीदाबाद पड़ गया।