मेरी पहली बस यात्रा
Meri Pahli Bus Yatra
मैंने सदा पापा की कार या वैन में ही सफ़र किया था। पाठशाला घर के। पास होने के कारण वैन अधिक सुविधाजनक रहती थी। इस कारण मैंने कभी बस में प्रवेश करके भी नहीं देखा था।
पाठशाला से पास के संग्रहालय तक जाने का अवसर मिला तो बस में सवार होना पड़ा। इतनी ऊँची और विशाल बस में पैर रखने पर मुझे डर अनुभव हुआ।
मित्रों ने मुझे खिड़की के साथवाली सीट पर बिठा दिया। वहाँ से दृश्य बहुत अद्भुत था। सभी गाड़ियाँ, सभी लोग कितने छोटे दिखते थे। बस चलने पर आस-पास का दृश्य साफ़ दिखाई देने लगा। ऊँचे पेड़ अब हाथ-भर की दूरी पर थे। अब मैं सब वाहनों के अंदर देख सकता था। खुली हवा का स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा था।
आज अचानक चालक ने ब्रेक लगाई और अपने अनुभव में खोया, मेरा सिर आगे की सीट पर टकराया। मेरा सुखद अनुभव यहीं तक था। मुझे मेरी वैन ही अच्छी लगती है।