आदर्श विद्यार्थी
An Ideal Student
बचपन से लेकर युवा होने के कुछ बाद तक का काल विद्या की प्राप्ति का काल माना जाता है । इस काल में यह निश्चित हो जाता है कि विद्यार्थी का आगे का जीवन कैसा होगा । आदर्श विद्यार्थी विद्या-अध्ययन के इस काल का उपयोग कर स्वयं को समर्थ चरित्रवान और जीवन-निर्वाह के योग्य बना लेता है । विद्या की प्राप्ति से बढकर विद्यार्थियों का और कोई लक्ष्य नहीं हो सकता।
विद्या प्राप्ति के कई माध्यम हैं । नम्र और जिज्ञासु बनकर गुरुजनों से विद्या ग्रहण की जा सकती है । समझ न आने वाले प्रश्न को नम्रतापूर्वक बार-बार पूछकर अपना ज्ञान बढ़ाया जा सकता है । पाठ्य-पुस्तकों तथा सामान्य जानकारी की पुस्तकों के निरंतर अभ्यास से जटिल से जटिल विषय को समझा जा सकता है। जीवन में आए दिन मिलने वाले अनुभवों से भी विद्यार्थी बहुत कुछ सीख सकता है । खेलों की बारीकियाँ, नृत्य-संगीत का तालमेल आदि कितनी ही बातें हैं जो अभ्यास से सीखी जा सकती हैं । दैनिक समाचार-पत्र के अध्ययन और शैक्षणिक भ्रमण से नई-नई बातों का ज्ञान होता है । आदर्श विद्यार्थी इन सभी विधियों को आजमाकर अपने ज्ञान को बढ़ाता रहता है।
विद्यार्थी को परिश्रमी और स्वाध्यायी होना चाहिए । कहा गया है कि सुख चाहने वालों को विद्या नहीं मिल सकती और विद्या चाहने वालों को सुख का त्याग कर देना पड़ता है । आदर्श विद्यार्थी को प्रत्येक क्षण का महत्त्व समझना चाहिए । एक क्षण भी नष्ट करने वाले को विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती । गप्पे मारने व्यर्थ घूम हर समय मनोरंजन की चाह रखने वाले आदर्श विद्यार्थी नहीं बन सकते । एक आदर्श विद्यार्थी को तो सदा कुछ न कुछ सीखने की लगन होनी चाहिए।
सादा जीवन और उच्च विचार की भावना से प्रेरित विद्यार्थी ‘आदर्श विद्यार्थी’ कहलाते हैं । फैशन के पीछे भागना, अधिक टेलीविजन देखना, हमेशा तड़क-भड़क से रहना आदर्श विद्यार्थियों के लक्षण नहीं हैं । विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने शरीर की रक्षा के प्रति उचित ध्यान दें । स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन रहता है और स्वस्थ मन से ही विद्या की प्राप्ति संभव है । अतः विद्यार्थियों को संतुलित भोजन और उचित नींद जैसी स्वास्थ्यप्रद आदतों के प्रति हमेशा जागरूक रहना चाहिए ।
स्वावलम्बन आदर्श विद्यार्थियों का आवश्यक गुण है । अपना काम खुद करने की आदत डालने से विद्यार्थी सुखी रहते हैं । हमेशा दूसरों के ऊपर निर्भर रहने वाले व्यक्ति को जीवन में अधिक कठिनाई आती है । इस तरह स्वावलम्बी, सदाचारी, संयमी, परिश्रमी और विनम्र विद्यार्थी स्वयं को आदर्श विद्यार्थी कहलाने का दावा कर सकते हैं । विद्या प्राप्ति के प्रति कौए जैसी सतर्कता, बगुले के समान ध्यान, कुत्ते जैसी नींद, कम भोजन करना तथा घर में रहने के मोह का त्याग कर देना ये पाँच लक्षण आदर्श विद्यार्थियों के बताए गए हैं । ये नियम हालाँकि पुराने हैं परन्तु आज भी इनकी कुछ न कुछ उपयोगिता अवश्य है।
आदर्श विद्यार्थी भावी समाज का निर्माण करते हैं । वे आगे चलकर देश और समाज को एक नई दिशा देते हैं। वे देश की समस्याओं से भली-भाँति परिचित होते हैं । वे योग्य नागरिक बनकर इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते हैं । इस तरह आदर्श विद्यार्थी न केवल अपना बल्कि अपने देश का भविष्य भी सँवारते हैं।