जब मैं पाठशाला देरी से पहुँचा
Jab me School me Deri sa pahucha
मैं समय पर कार्य करने को बहुत महत्त्व देता हूँ। मेरे सभी कार्य, पढाई । भोजन, खेल-कूद यथासमय होते हैं। मैं पाठशाला के लिए भी सही समय पर तैयार होकर पहुँचता हूँ। परंतु एक दिन माता जी की अस्वस्थता के कारण मैं प्रार्थना सभा के बाद पाठशाला पहुँचा।
हमारी मुख्य अध्यापिका जी पाठशाला के मुख्य द्वार पर किसी से बात कर रही थीं। उन्हें मुझपर देरी से आने पर क्रोध आया और वे सीधे मुझे मेरी कक्षा की ओर ले गईं। मेरी अध्यापिका जी पढ़ा रही थीं। उन्होंने मुख्य अध्यापिका को विश्वास दिलाया कि मैं आदर्श विद्यार्थी हूँ और मेरी एक भूल को क्षमा कर देना चाहिए। फिर मुख्य अध्यापिका जी ने कारण पूछ सभी छात्रों को मेरा उदाहरण दिया। सदा अच्छे आदर्शों का पालन करने पर हमारी गलती भी क्षमा हो जाती है।
इस अनुभव के बाद मेरी समय और परिश्रम के प्रति लगन और बढ़ गई।