वन-संरक्षण की जरूरत
Van Sanrakshan Ki Jarurat
वन प्राकृतिक सुषमा के घर हैं। इन्हीं वनों में अनेक वन्य प्राणियों को आश्रय मिलता है। ये वन ही पर्यटन के आकर्षक स्थल हैं। बाघ, सिंह, हाथी, चीता तथा इसी प्रकार के अन्य आकर्षक पशु-पक्षी वनों में ही निवास करते हैं। हमारे देश में तो वृक्षों को पूजने की परम्परा है। हमारी संस्कृति में वृक्षारोपण पुण्य का कार्य माना जाता है तथा किसी फलदार अथवा हरे-भरे वृक्ष को काटना पाप। पुराणों के अनुसार एक वृक्ष लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना दस गुणवान पुत्रों का यश। खेद का विषय है कि हम वन-संरक्षण के प्रति न केवल उदासीन हो गए हैं वरन् उनकी अंधाधुंध कटाई करके स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। आज नगरीकरण शैतान की आँत की तरह बढ़ता जा रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आवासीय भूमि तथा उद्योग-धंधों की बढ़ती आवश्यकता ने हमें वनों की सफाई करने पर विवश कर दिया है। परिणामत: आज हमारे देश में वन-क्षेत्रों का निरंतर अभाव होता जा रहा है। वनों को काटकर शानदार बस्तियाँ बसाई जा रही हैं तथा बड़े-बड़े उद्योग-धंधे स्थापित किए जा रहे हैं जिसका प्रभाव हमारी जलवायु पर पड़ रहा है। आए दिन आने वाली बाढ़ें, सूखा, भू-क्षरण, पर्वत-स्खलन तथा पर्यावरण की समस्याएँ मानव के विनाश की भूमिका बाँध रही हैं। ये समस्याएँ चेतावनी देती हैं-‘हे मनुष्य ! अभी समय है, वनों की अंधाधुंध कटाई मत कर अन्यथा बहुत पछताना पड़ेगा।’ पर मानव है कि उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती। वह वनों की कटाई के इन दूरगामी दुष्परिणामों की ओर से जान-बूझकर