जीवन में संघर्ष का महत्व
Jeevan Mein Sangharsh Ka Mahatva
हम सभी जानते हैं कि संघर्ष ही जीवन है। मानव को जीवन में अनेक प्रकार के संघर्ष करने पड़ते हैं जिसमें उसे अनेक का को सहन करना पड़ता है। पुरुषार्थी मानव अपने पुरुषार्थ के बल पर सफलता प्राप्त कर लेता है। इस पुरुषार्थ का संबंध भी मानव-मा से है क्योंकि व्यक्ति के सभी प्रकार के कर्म तथा व्यवहारों को नियंत्रण करने वाली यदि कोई शक्ति है, तो वह है उसका ‘मन’। नि मन वाला व्यक्ति अनेक प्रकार के साधनों से सम्पन्न होते हुए भी असफल हो जाता है, जबकि अपेक्षाकत कम शक्ति सम्पन्न होत भी चित्त को दृढ़ता से युक्त व्यक्ति कभी पराजय का मुंह नहीं देखता। कौरव सभी प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न होते हुए भी पाजा हए क्योंकि पाण्डवों का मन असीम दृढ़ता एवं अदम्य शक्ति से युक्त था। इसी प्रकार के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। महात्मा गाँधी के चित्त की दृढ़ता के समक्ष विशाल अंग्रेजी साम्राज्य को घुटने टेकने पर विवश होना पड़ा था। मन की दृढ़ता के बल पर ही प्राचीन काल में अनेक ऋषि-मुनि अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त कर लिया करते थे। मन की दुढता के कारण ही कालिदास जैसा मूर्ख संस्कृत का सर्वश्रेष्ठ कवि बन पाया। जापानियों के मन की दृढ़ता को देखिए-विश्व युद्ध में परमाणु बम से होने वाली तबाही के बावजूद वे पुनः उठ खड़े हुए और आज विश्व के शीर्षस्थ राष्ट्रों में गिने जाते हैं। व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने मन को दुर्बल न होने दे। जिसने अपने मन को जीत लिया, उसने मानो सारे संसार पर विजय प्राप्त कर ली। मन को अपने वश में कर लेने वाले व्यक्ति ही स्वावलम्बी या परुषार्थी कहलाते हैं। व्यक्ति को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश सब उसी तरह आते-जाते रहते हैं जैसे सूर्यास्त के बाद सूर्योदय। इसलिए पराजय के क्षणों में धैर्य बनाए रखना चाहिए और अपने मन में दुर्बलता को कभी नहीं आने देना चाहिए।