मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
Mokshagundam Visvesvaraya
मैसूर के पूर्व दीवान
जन्म: 15 सितंबर 1860, मुद्देनहल्ली
निधन: 14 अप्रैल 1962, बेंगलुरु
- महान् इंजीनियर और भारत-निर्माता सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जमीन से जड़े व्यक्ति थे। बचपन से ही वे परिश्रमी और पढ़ाकू थे।
- 16 वर्ष की अवस्था में ही एक बार उन्होंने चिकवल्लपुर से बंगलौर तक 30 मील की दूरी पैदल चलकर तय की थी। अपनी पढ़ाई का खर्च वे दूसरे बच्चों को पढ़ाकर चलाते थे।
- सन् 1850 में स्नातक होते के बाद उन्होंने छात्रवृत्ति पाकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और उसमें प्रथम स्थान प्राप्त किया। इंजीनियर बनकर उन्होंने कराँची, अहमदाबाद आदि नगरों के लिए जल आपूर्ति योजनाएं बनाईं।
- इसी दौरान हैदराबाद शहर भीषण बाढ़ की चपेट में आ गया। विश्वेश्वरैया शांत नहीं बैठे । उन्होंने हैदराबाद की जनता के भविष्य की सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े जलभंडारण कुएं बनाने की सलाह दी।
- सन् 1909 में वे मैसूर राज्य के प्रमुख इंजीनियर और सन् 1912 में दीवान बना दिए गए। यहाँ उन्होंने बहुत से निर्माण कार्य किए। पूरे राज्य में उद्योगों का जाल बिछा दिया। मैसूर विश्वविद्यालय व मैसूर बैंक की नींव रखी। भद्रावती का इस्पात कारखाना उन्हीं के सपनों का साकार रूप हैं। उन्होंने कुटीर उद्योगों को भी बढ़ावा दिया।
- श्री विश्वेश्वरैया बचपन से ही समय के बहुत पाबंद थे। एक बार, विधानसभा के उद्घाटन के लिए उन्हें महाराज की अगवानी करनी थी। महाराज नियत समय से कुछ देर से आए। तब तक विश्वेश्वरैया उनके लिए एक विनम्र किंतु कर्तव्य बोध कराने वाला पत्र छोड़कर जा चुके थे।
- वे सच्चे कर्मयोगी थे। हुमायतसागर और उस्मानसागर बाँध का नक्शा तैयार करने के बदले निजाम की सोने के सिक्कों से भरी थैली को उन्होंने अस्वीकार कर दिया था।
- तत्कालीन राजनीति में भी उन्होंने रुचि दिखाई। मालवीय जी के दल केसाथ गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। लगभग तीस सालों तक टाटा लौह इस्पात संयंत्र के निदेशक रहे। अखिल भारतीय निर्माता संघ के अध्यक्ष भी रहे।
- ब्रिटिश सरकार से सर की उपाधि पाई। 1955 में स्वाधीन भारत में सर्वोच्च अलंकरण ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किए गए।
- अपने शताब्दी वर्ष के भरे पूरे आयोजन को देखने के बाद 14 अप्रैल 1962 को उनका देहांत हो गया।