कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
Kanhaiya lal manik lal Munshi
जन्म : 30 दिसंबर, 1887
भड़ौच (गुजरात)
- बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जब छोटे से थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था।
- दस साल की अवस्था में ही उन्होंने निबंध लिखने शुरू कर दिए थे।
- वे बड़ौदा कॉलेज में श्री अरविंद के शिष्य रहे और तभी से उनके मन में कला, देशभक्ति और काम के लिए समर्पण की भावना भर गई।
- सन् 1913 में वे बम्बई न्यायालय के वकील बने। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वह होमरूल आदोलने में कूद पड़े। उन्होंने बारडोली और नमक सत्याग्रह में भाग लिया।
- कांग्रेस संसदीय समिति के सचिव और सन् 1938 में बम्बई प्रांत के गृहमंत्री बने। इसी समय उन्होंने भारतीय विद्या भवन’ एवं ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर’ की नींव डाली।
- सन् 1941 में मुंशीजी ने कांग्रेस छोड़ दी और अखंड हिन्दुस्तान आंदोलन चलाया। संविधान सभा के सदस्य रहे।
- हैदराबाद के भारत में विलय के समय वहाँ भारत के एजेण्ट नियुक्त किए गए।
- सन् 1950 से 1952 तक कृषि एवं खाद्य मंत्री के रूप में कार्य करते रहे। उन्होंने विश्व संस्कृत परिषद्’ की स्थापना की। सन् 1952 से 1957 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे।
- श्री मुंशी साहित्यिक क्षेत्र में भी अग्रणी रहे। गुजराती, हिन्दी और संस्कृत साहित्य पर उनका समान अधिकार था। उनकी सौ से भी अधिक साहित्यिक कृतियाँ हैं।
- मुंशीजी का देहांत 8 फरवरी, 1971 को हो गया ।