डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
10 Lines on Dr Rajendra Prasad
President of India
जन्म: 3 दिसम्बर 1884, जीरादेई
निधन: 28 फरवरी 1963, पटना
- डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के दादा बिहार की हथुआ रियासत के दीवान रहे थे । अतः पिता भी जमीदारी की देख भाल करते थे । पिता के धार्मिक विचारों का प्रभाव राजेन्द्र बाबू पर आजीवन रहा । 12 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हो गया ।
- छात्र जीवन से ही वह बहुत मेधावी थे । मैट्रिक परीक्षा में वे प्रथम आए। स्नातकोत्तर और कानून की शिक्षा लेने के बाद सन् 1911 में कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत करने लगे।तत्कालीन उपकुलपति श्री आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें कानून का शिक्षक नियुक्त किया । सन् 1916 में बिहार के अलग होने के बाद वे पटना हाई कोर्ट में चले गए।
- अपने अकादमिक जीवन के साथ-साथ राजेन्द्र बाबू राजनीतिक जीवन में भी सक्रिय होते चले गए ।
- सन् 1906 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में स्वयं सेवक की तरह कार्य किया । राजनीति से उनका सीधा संपर्क सन् 1917 में गांधीजी के चम्पारन सत्याग्रह के समय हुआ।
- अपने फले-फूले वकालत के व्यवसाय को छोड़ दिया और पूरी तरह से देश-सेवा में लग गए।
- राजनैतिक गतिविधियों का केंद्र पटना का सदाकत आश्रम उन दिनों राजेन्द्र बाबू का घर था । अपने विनम्र, शर्मीले, मृदुभाषी किंतु दृढ़ स्वभाव के कारण वह बहुत लोकप्रिय थे । उन्हें बिहार का गांधी कहा जाता था ।
- सन् 1934 में बिहार में जबरदस्त भूकंप आया । राजेन्द्र बाबू तन-मन-धन से लोगों की सेवा में लग गए । मीलों तक पैदल चलते । इसी समय वह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए ।
- सरदार पटेल के साथ वे जवाहरलाल नेहरू जी के खास सलाहकार रहे। सन् 1946 में उन्हें संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने भारतीय संविधान को जनता के लिए प्रस्तुत किया।
- डॉ० राजेन्द्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। अपनी लोकप्रियतासे वे दूसरी बार भी राष्ट्रपति चुने गए ।
- सन् 1962 में पदभार से मुक्त होने के बाद पुनः अपने प्रारंभिक कार्यक्षेत्र सदाकत आश्रम में लौट आए। 28 जनवरी 1963 को वहीं उनका निधन हो गया ।