चंद्रशेखर वेंकटरमन
C.V. Raman
जन्मः 7 नोव्हेंबर 1888, तिरुचिरापल्ली
मृत्यू: 21 नोव्हेंबर 1970, बेंगळुरू
- डॉ. चंद्रशेखर रमन के पिता चंद्रशेखर अय्यर की गणित और विज्ञान में विशेष रुचि थी। उनकी माँ पार्वती एक सभ्य स्त्री थीं।
- केवल 12 वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। छोटे से इस बालक को बी.एस-सी. की कक्षा में देखकर अध्यापक महोदय भी एक बार को चकरा गए।
- भौतिकशास्त्र में एम.एस-सी. करने के बाद रमन कलकत्ता में असिस्टेंट अकाउंटेंट जनरल के पद पर कार्य करने लगे।
- शीघ्र ही वे ‘इण्डिन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ में डॉ. आशुतोष मुखर्जी के संपर्क में आए। उनकी प्रतिभा देखकर श्री मुखर्जी ने उन्हें मनचाही नौकरी दे दी।
- कुछ समय बाद रमन को कलकत्ता के ही एक विज्ञान महाविद्यालय वा प्राचार्य बना दिया गया।
- कलकता विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर ऑफ साइंस’ की उपाधि दी और लंदन की रॉयत सोसायटी ने उन्हें अपना फैलो चुना। कलकत्ता में ही डॉ. रमन ने ‘रमन प्रभाव’ का प्रतिपादन किया था।
- उन्होंने प्रकाश’ पर काम करके सिद्ध किया कि जब प्रकाश की एकरंगी किरण किसी पारदर्शी पदार्थ से गुजरती है, तो उस किरण का कुछ भाग अपने मार्ग में फैल जाता है।
- इस फैले हुए प्रकाश की तरंग लम्बाई प्रारंभिक प्रकाश की तरंग लम्बाई से अधिक होती है। इसी प्रकार इसका रंग भी आरंभिक प्रकाश से भिन्न होता है। ‘रमन प्रभाव’ भौतिकी और रसायन विज्ञान के अध्ययन में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ।
- उनकी इस महत्त्वपूर्ण खोज के लिए बिटिश सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया । नोबेल पुरस्कार पाने वाले वे प्रथम एशियाई व्यक्ति थे। भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत-रत्न’ की उपाधि से विभूषित किया।
- बंगलौर में ‘रमन इन्स्टीट्यूट’ की स्थापना करके उन्होंने अपना अधिकांश समय विज्ञान संबंधी अनुसंधानों में लगाया । 20 नवम्बर, 1970 को भारत का यह रत्न स्वर्गवासी हो गया।