डॉ० भगवानदास
Bhagwan Das
भारतीय राजनीतिज्ञ
जन्म: 12 जनवरी 1869, वाराणसी
मृत्यु: 18 सितंबर 1958, वाराणसी
- डॉ. भगवानदास का जन्म उच्च मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता माधवदास संपन्न ज़मींदार थे।
- भगवानदास शुरू से ही बहुत प्रतिभाशाली थे। उन्होंने 12 वर्ष की अल्पायु में मैट्रिक और 16 वर्ष में बी.ए. कर लिया। सन् 1886 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। उनका विवाह चमेली देवीसे हुआ
- शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने लगभग आठ वर्षों तक सरकारी नौकरी की। वह तहसीलदार एवं उप जिलाध्यक्ष रहे। सन् 1899 में समाज-सेवा हेतु नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।
- एनी बेसेंट की होम रूल लीग में शामिल हो गए और लगन से काम करने लगे। उनका मानना था कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
- वह बच्चों को धर्म की शिक्षा देना आवश्यक मानते थे तथा वर्तमान परीक्षा प्रणाली से असंतुष्ट थे। वह सन् 1921 से 1926 तक काशी विद्यापीठ के प्रमुख रहे।
- राजनीति में उनका पदार्पण 1919-20 में ही हो गया था। सक्रिय राजनीति में रहते हुए उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और नौ महीने के लिए बंदी बना लिए गए।
- वर्ष 1930-31 में कानपुर के सांप्रदायिक दंगों के लिएबनी जाँच समिति का नेतृत्व किया। लंबे समय तक बनारस म्यूनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष रहे। स्वतंत्रता पश्चात् संविधान सभा के लिए चुने गए। वह एक प्रभावशाली वक्ता थे।
- समाज-सुधार में उनकी गहरी रुचि थी। वह वैदिक संस्कारों की पुनर्स्थापना करना चाहते थे। सन् 1932 में गांधीजी ने उन्हें विशेष रूप से हरिजनों को मंदिर प्रवेश दिलाने का काम सौंपा था।
- डाक्टर भगवानदास ने ‘साइंस ऑफ इमोशन्स’, ‘द एसेन्शियल यूनिटी ऑफ आल रिलीजन्स’ जैसी कई पुस्तकें लिखीं। सन् 1955 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
- सन् 1958 में उनका निधन हो गया।