हिंदुओं में रुद्राक्ष की माला का महत्त्व क्यों है?
Hinduo me Rudraksh ki Mala ka mahatva kyo hai?
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, रुद्राक्ष को भगवान् शिव का ही स्वरूप माना गया है। रुद्र + अक्ष (रुद्राक्ष) अर्थात् रुद्र (शिव) की आँखों से उत्पन्न ‘रुद्राक्ष’ फल व फूल दोनों ही है। इसका रंग भूरा होता है, यह गर्म व तर होता है। रुद्राक्ष के विषय में हमारे धार्मिक एवं पौराणिक ग्रन्थों में अनेक प्रकरण मिलते हैं। रुद्राक्ष को मुखदार रूप में पूजा जाता है, इसकी माला बनाकर पहनी जाती है तथा इसका औषधि के रूप में भी अनेक प्रकार से प्रयोग किया जाता है।
मान्यता ऐसी है कि घर में रुद्राक्ष की पूजा-अर्चना करने से लक्ष्मी का हमेशा वास रहता है तथा अन्न, वस्त्र व अन्य किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती है। जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करते हैं, उनको भूत-प्रेत आदि व्याधियाँ कभी भी परेशान नहीं करती हैं। रुद्राक्ष की पूजा-अर्चना करने वाले निश्चय ही अंत समय में स्वर्ग जाते हैं।
कुछ विद्वान् इसे ठण्डा भी मानते हैं। यह रक्त-विकार को नष्ट तथा धातु को पुष्ट करता है। शरीर के बाहर और भीतर के कीटाणुओं को मारता है। इससे रक्तचाप व हृदय रोग दूर होने में मदद मिलती है। स्वाद में खट्टा-सा लगता है। रुद्राक्ष को सभी मालाओं में सर्वश्रेष्ठ माना गया है तथा इस पर किये गये मन्त्र-जप आदि का फल भी सभी मालाओं पर किये गये जप से कई सहस्र गुणा ज्यादा मिलता है, ऐसा हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है।
रुद्राक्ष का विविध रोगों में प्रयोग
(1) आयुर्वेदिक दृष्टि से रुद्राक्ष को महौषधि माना गया है। इसके विषय में कहा गया है कि यह उष्ण और अम्ल होता है। इसी कारण यह वात और कफ तथा अन्य रोगों का शमन करता है। अम्ल विटामिन ‘सी’ युक्त होने के कारण यह रक्तशोधक तथा रक्तविकार नाशक होता है। उष्ण होने के कारण यह सर्दी और कफ से होने वाले सभी रोगों में उपयोगी माना गया है।
(2) उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए तो रुद्राक्ष माला एक वरदान स्वरूप है। यह माला रक्तचाप नियन्त्रित रखती है। इसके लिए आवश्यक है कि रुद्राक्ष के दाने या रुद्राक्ष की माला रोगी के हृदय तक लटकती रहे अर्थात् हृदयस्थल को स्पर्श करती रहे। यह रोगों के शरीर की अनावश्यक गर्मी अपने में खींचकर उसे बाहर फेंकती है। अनेक ऋषि-मुनियों का मत है कि रुद्राक्ष धारण करने से मन को असीम शान्ति मिलती है तथा उच्च रक्तचाप नियन्त्रित रहता है।
(3) रुद्राक्ष के दाने को पानी में घिसकर यदि विषाक्त फोड़ों पर इसका लेप किया जाये, तो फोड़े ठीक हो जाते हैं।
(4) रुद्राक्ष के दाने को रात को ताँबे के बर्तन में जल भर कर उसमें डाल दें। सुबह दानों को निकाल कर खाली पेट उस जल को पीने से हृदय रोग तथा कब्ज आदि में लाभ मिलता है।
(5) रुद्राक्ष को दूध में उबालकर, दूध पीने से स्मरणशक्ति बढ़ती है तथा खाँसी में भी आराम मिलता है।
रुद्राक्ष, तुलसी आदि दिव्य-औषधियों की माला धारण करने के पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि होंठ व जीभ का प्रयोग कर उपांशु जप करने से साधक की कण्ठ-धमनियों को सामान्य से अधिक कार्य करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप कण्ठमाला, गलगण्ड आदि रोगों के होने की आशंका होती है। उसके बचाव के लिए गले में उपर्युक्त माला पहनी जाती है।
रुद्राक्ष की माला श्रद्धापूर्वक विधि-विधानानुसार धारण करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। सांसारिक बाधाओं और दु:खों से छुटकारा होता है। मस्तिष्क और हृदय को बल मिलता है। रक्तचाप संतुलित होता है। भूत-प्रेत बाधा दूर होती है। मानसिक शांति मिलती है। शीत-पित्त रोग का शमन होता है। इसीलिए इतने लाभकारी, पवित्र रुद्राक्ष की माला के प्रति भारतीय जन मानस की अनन्य श्रद्धा है। जो मनुष्य रुद्राक्ष की माला से मंत्रजप करता है, उसे दसगुना फल प्राप्त होता है। अकालमृत्यु का भय भी नहीं रहता है।
रुद्राक्ष की माला या उसका एक ही दाना धारण करने के पूर्व स्नान आदि करके, शुद्ध होकर करना चाहिए।