छाता
Umbrella
(बारिश से राहत और छाया के लिए)
मौसम चाहे चिलचिलाती धूप वाला हो या झमाझम बारिश वाला, छाता ही एक ऐसी चीज है, जिससे आदमी को राहत मिलती है। बर्फीले इलाकों में लोग तो हल्के हिमपात के समय भी छाते का प्रयोग करते हैं। इसका यह नामकरण शायद इसीलिए किया गया है, क्योंकि छाया के लिए यह सिर पर छाया है।
छाता का वर्तमान रूप, जिसे हम नित्यप्रति उपयोग में लाते हैं, का जन्म कब हुआ—यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन हां, यह स्पष्ट है कि छाता आदिकाल में अस्तित्व में नहीं था।
छाता ‘छत्र’ का ही परिष्कृत रूप है। डेढ़-दो हजार साल पहले की कौन कहे, उससे भी पहले राजा-महाराजाओं के सिंहासन के ऊपर छत्र लगा रहता था। प्राचीन मिस्र में छत्र के प्रयोग का उल्लेख मिलता है। वहां खुदाई में मिली फेराओ (सम्राट्) की आकृतियों में भी बड़ा सा छत्र बना है। प्राचीन चीन में लोग त्योहारों के अवसर पर वैसे छत्र, जो सोने के बने होते थे और जिन पर हीरे-मोती टांके गए रहते थे, धारण कर जुलूस में आगे-आगे चलते थे। जापान आदि देशों में भी राजा अपने महल से बाहर छत्र के बिना नहीं निकलते थे।
आज से लगभग पांच सौ वर्ष पहले छत्र के स्वरूप में थोड़ा परिवर्तन किया गया और उसे छाते का रूप दिया गया, लेकिन इस बदले हुए रूप में भी इसका सामान्यीकरण नहीं हुआ। तब (सोलहवीं शताब्दी में) चमड़े का छाता बनाया जाता था। उन दिनों पुरुषों में सिर्फ पादरी ही छाते का इस्तेमाल करते थे। इसके पीछे पोप का शायद यह आदेश ही था कि उनकी अनुमति के बिना कोई व्यक्ति (महिला या पुरुष) छाते को इस्तेमाल में न लाए। इस फरमान का असर पुरुषों पर तो हुआ, लेकिन इंग्लैंड की महिलाओं, खासकर युवतियों पर नहीं हुआ। छाता लेकर गौरव-बोध से युक्त होकर उन्होंने सड़क पर चलना जो शुरू किया, सो फिर छोड़ा ही नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि दो-ढाई साल के अन्दर ही इंग्लैंड की सड़कों पर आकर्षक रूप-रंग में सूती तथा रेशमी कपड़ों के छाते नजर आने लगे। जो पुरुष अपने सिर पर छाता तानकर सड़कों पर या पार्को में निकलता, उसे कई तरह के ताने दिए जाते। जैसे-मर्द हो तो इतना नाजुक मत बनो, धूप-बारिश को झेलो। महिलाओं-लड़कियों की तरह छाता क्यों लगाते हो?
सन् 1760 के आस-पास जोंस हैनवे नामक एक व्यक्ति ने इन तानों की परवाह न करते हुए ‘खुलेआम छाता का उपयोग करने वाले प्रथम पुरुष’ का गौरव प्राप्त किया। उसके बाद तो पुरुषों की झिझक दूर हो गई। तब से वे भी छाते का उपयोग करने लगे। कुछ ही समय के अन्दर छाता आम उपयोग की चीज बन गया। हां, उन लोगों (पुरुषों) ने रंगीन छाते का प्रयोग करने से परहेज किया; उन्होंने अपने लिए काले रंग का छाता ही चुना और यह आज भी बरकरार है।
छाते का व्यापक प्रयोग इंग्लैंड में ही शुरू हुआ। यहीं छाते के रूप-रंग में क्रमशः बदलाव और सुधार होता गया। यहीं से छाता यूरोप के विभिन्न देशों और फिर यूरोप से बाहर के देशों में गया। कुछ ही वर्षों में यह गांव-गांव तक फैल गया। आज से तीन दशक पहले ही हमारे देश में भी ऐसे छाते मिलने लगे थे, जो बटन दबाते ही स्वयं खुल जाते हैं या दो या तीन मोड़ों में मोड़कर एक लेडीज बैग में भी रखे जा सकते हैं। ‘समुद्र-तट तथा रेस्तरां की छतों पर बड़े छाते भविष्य में छाते के रूप-रंग में होने वाले बदलावों का एक नमूना पेश करते नजर आते हैं।