टेलीफोन
Telephone
(देश-विदेश में बातचीत का अनोखा यंत्र)
साधारण आदमी की कौन कहे, अति विशिष्ट लोगों के बीच भी आम इस्तेमाल की वस्तुओं के बीच टेलीफोन इतनी खास जगह बना चुका है कि इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। आजकल शहरों की बात तो दूर, गांवों में भी लोगों का जीवन टेलीफोन पर कमोबेश निर्भर रहने लगा है। टेलीफोन की लगभग एक सौ तीस वर्ष पुरानी स्थानीय सेवा और लगभग नब्बे वर्ष पुरानी दूरस्थ सेवा ने अब तक विकास की लम्बी यात्रा तय की है।
उन्नीसवीं शताब्दी के आठवें दशक की यानी आज से लगभग एक सौ तीस वर्ष पहले की, बात है। अमेरिका में बिजली की एक अनोखी दुकान थी। अनोखी इस अर्थ में वहां से ऐसे लोगों को सहायता दी जाती थी जो किसी वस्तु का आविष्कार करने की अभिलाषा संजोए हुए थे। वे उस काम के प्रति समर्पित भी थे; परन्तु बिजली का जानकार नहीं होने ‘ के कारण वे अपनी उक्त इच्छित वस्तु का आविष्कार कर नहीं पाते थे।
उस दुकान पर काम करने वाले ऐसे ही दो युवक थे-थॉमस ए. वाटसन ‘ तथा एलेक्जेंडर ग्राहम बेल । वाटसन मात्र चौदह वर्ष की उम्र में पढ़ाई ‘ छोड़कर दुकान पर काम करने लगे थे और बेल बोस्टन विश्वविद्यालय में ने की कला सिखाते थे। दोनों मिलकर टेलीफोन का आविष्कार करने दिशा में कार्य करने लगे। सन् 1876 में वे इसमें सफल हुए। इसमें नों में बेल की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण थी। अतः टेलीफोन का आविष्कारक होने का श्रेय उन्हीं (बेल) को दिया जाता है। 9 मार्च, 1876 – वेल ने टेलीफोन का पेटेंट कराया। अगले दिन, अर्थात् 10 मार्च को, उन्होंने (बेल ने) वाटसन के पास फोन किया। इस प्रकार विश्व में वाटसन ऐसे प्रथम व्यक्ति हुए, जिन्हें पहली बार फोन की घंटी सुनने का गौरव प्राप्त हुआ। उन्होंने रिसीवर उठाया तो उधर से बेल ने कहा, ‘मिस्टर वाटसन, कृपया यहां आइए, मैं आपसे मिलना चाहता हूं।’ दूर की इस आवाज को सुनकर वाटसन इतने आहलादित हुए कि तब चाहकर भी वे कुछ बोल नहीं पाए।
इन दोनों को आशा ही नहीं थी, बल्कि पूर्ण विश्वास था कि उनके इस आविष्कार को दुनिया हाथोंहाथ लेगी, लेकिन तुरन्त ऐसा हुआ नहीं। इस आविष्कार के ढाई माह बाद 25 जून, 1876 को फिलाडेल्फिया में लगी शताब्दी प्रदर्शनी में टेलीफोन को देखकर किसी ने भी उत्साहजनक प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। इससे बेल और वाटसन थोड़ा हताश हुए, लेकिन उनकी यह हताशा अधिक समय तक नहीं रही। उसी प्रदर्शनी के दौरान ब्राजील के सम्राट् जब फोन के पास आए और उसकी उपलब्धि को देखा तो सहज ही बोल पड़े, ‘हे भगवान्, यह तो बोलता है।
इस टिप्पणी के बाद तो फोन अचानक चर्चा का विषय बन गया। हर तरफ इसी की चर्चा होने लगी। ग्रेट ब्रिटेन (इंग्लैंड) की महारानी ने भी इसे देखने की इच्छा प्रकट की। उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए 14 जुलाई, 1877 को महारानी के महल और कैंटबरी हॉल के बीच टेलीफोन लाइन बिछाई गई। अंततः महारानी ने उसे देखा, परखा और आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की।
इसके बाद तो पूरी दुनिया में टेलीफोन जाना-पहचाना और अपनाया न लगा। बेल की टेलीफोन लेबोरेटरी ने तो बाद में टेलीफोन से जुड़ी जनक खोजें कर डालीं। कालांतर में इस लेबोरेटरी को पांच-पांच बार नोबेल पुरस्कार भी दिए गए।
इस आविष्कारक में वाटसन द्वारा किए योगदान को बेल भूले नहीं। आविष्कारक के अगले वर्ष, अर्थात् सन् 1877 में, बेल ने जब अपनी कम्पनी की स्थापना की तो वाटसन को उस (कम्पनी) के दसवें भाग का साझीदार बनाया।
चूंकि इस टेलीफोन द्वारा कम दूरी से ही बातचीत की जा सकती थी। अतः वे दोनों-वाटसन और बेल, खासकर बेल-लम्बी दूरी से इसके द्वारा बातचीत करने का प्रयास करते रहे। अंततः लगभग चार दशक बाद (सन् 1915 में) लम्बी दूरी वाली पहली टेलीफोन सेवा का उद्घाटन किया गया। रोचक बात यह रही कि इसका भी शुभारम्भ बेल और वाटसन ने ही मिलकर 25 जनवरी, 1915 को किया। उस दिन न्यूयॉर्क में बैठे सेन ने फ्रांसिस्को में बैठे वाटसन को वही उनतालीस वर्ष पहले का वाक्य दुहरा दिया, ‘मिस्टर वाटसन, कृपया यहां आइए, मैं आपसे मिलना चाहता हूं।’ उनतालीस वर्ष पहले की तरह इस बार वाटसन अवाक् नहीं हुए। उन्होंने प्रसन्न भाव से कहा, “मुझे वहां आने में हार्दिक प्रसन्नता होगी, मगर एक सप्ताह लग जाएगा।