छुरी-कांटे
Knife-fork
(कांटे का पहले-पहल इस्तेमाल-इंग्लैंड के राजा एडवर्ड प्रथम)
जब अंग्रेज हमारे देश में आए तो छुरी-कांटों की परम्परा साथ लेकर आए। यहां के आभिजात्य वर्ग ने इस परम्परा की नकल प्रारम्भ की। फलतः यहां भी छुरी-कांटों से खाने का प्रचलन अब जोर पकड़ता जा रहा है।
आज पश्चिमी देशों में लोग चम्मच, छुरी, कांटे (फोक) से ही खाना खाते हैं। हमारे देश में भी इन छुरी-कांटों का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। छुरी-कांटों से खाना खाने की परम्परा तो बाद में प्रारम्भ हुई, कांटों का दूसरी तरह से प्रयोग पहले ही प्रारम्भ हो गया था।
अनुमान है कि पहले मध्य-पूर्व के देशों के लोग कांटों का इस्तेमाल खाने में करने लगे। तुर्की के कुस्तुनतुनिया शहर की एक लड़की इटली के युवक से शादी करके जब अपनी ससुराल गई तो अपने साथ कांटे भी ले गई। उसकी ससुराल में जब लोग हाथ से खाना खा रहे थे तो उसने अपने दो हुकवाले कांटे से खाना प्रारम्भ किया। वह छुरी-कांटों से मांस को आसानी से टुकड़े-टुकड़े कर लेती थी और आराम से खाती थी जबकि बाकी लोगों को मांस टुकड़े करके खाने में मशक्कत करनी पड़ती थी और उनके हाथ भी गंदे हो जाते थे।
इस तरह ग्यारहवीं शताब्दी में छुरी-कांटों से खाने का रिवाज यूरोप में पहुंचा। तेरहवीं सदी में इंग्लैंड के राजा एडवर्ड प्रथम ने पहले-पहल | कांटे का इस्तेमाल किया, पर वे कांटे शीशे के थे।
पंद्रहवीं सदी में पूरे यूरोप में कांटों से खाने का रिवाज चल पड़ा।
अंग्रेज आमतौर पर परम्परावादी होते हैं। उन्होंने कांटों का इस्तेमाल देर । से प्रारम्भ किया। पहले वे दो छुरियों के सहारे खाना खाया करते थे। एक छुरी से मांस काटते थे और दूसरी छुरी से मांस को मुंह में डालते थे। बाद में वे भी कांटों का इस्तेमाल करने लगे। सत्रहवीं सदी तक बिना। छुरी-कांटों के खाने की कल्पना करना कठिन हो गया।