साइकिल
Cycle
(कम समय में अधिक दूरी की चाहत)
पहिए के आविष्कार के साथ ही मनुष्य ने साइकिल की परिकल्पना कर डाली थी। उसे लगने लगा था कि दो पहियों के सहारे कम मेहनत में और कम समय में अधिक दूरी तय की जा सकती है। अनुमान है। कि मिस्र में ईसा पूर्व 1200 में ही साइकिल की परिकल्पना की जा चुकी थी। इसका चित्र एक मकबरे पर बना मिला है, जिसमें दो पहिए हैं, जो आपस में जुड़े हैं, पर उनमें पैडल नहीं हैं। यह पैरों द्वारा धक्का देकर चलाई जाती रही होगी । इस प्रकार के प्रयोग मिस्र, बेबीलोन, इटली आदि देशों में किए गए। इन सभी जगहों की साइकिलों में न तो पैडल था और न ही स्टीयरिंग। लोग इसे समय के साथ भूल भी गए।
सन् 1861 में नीपसे नामक फ्रांसीसी ने इसे दोबारा बनाया और उसमें स्टीयरिंग भी लगाया। इसके पहिए लकड़ी के थे। इसका नाम सेली रिपेड रखा गया। इसी प्रकार का प्रयोग सन् 1817 में एक जर्मन बैरॉन कार्ल वॉन ड्रेस ने भी किया। इसमें भी पैडल नहीं थे। पर इसकी चर्चा इंग्लैंड तक पहुंच गई और लोग इसे हॉबी हॉर्स के नाम से जानने लगे।
सन् 1839 में स्कॉटलैंड के एक लोहार किर्क पैट्रिक मैकमिलन ने बाइसिकिल का नया मॉडल तैयार किया, जिसमें पैडल भी थे; पर ये गोलाई में नहीं घूमते थे जिस तरह आज के पैडल घूमते हैं। ये पैडल आगे-पीछे घूमते थे।
साइकिल में सुधार की प्रक्रिया जारी रही। सन् 1871 में जेम्स स्टार्ले नामक अंग्रेज ने नई साइकिल तैयार की, जो आधुनिक साइकिल से काफी मिलती-जुलती है। इसका अगला पहिया बहुत बड़े और पिछला पहिया बहुत छोटे आकार का था। इसमें ब्रेक नहीं था। फलतः ढलान आदि पर साइकिल-सवार के गिरने की सम्भावना ज्यादा रहती थी।
सन् 1874 में एच.जे. लासन ने साइकिल का जो मॉडल तैयार किया, उसमें दोनों पहिए एक आकार के थे और पैडल चेन से जुड़ा था। यह साइकिल काफी सुरक्षित थी। सन् 1885 में पैडल में और सुधार किया गया तथा 1888 में जॉन डनलप ने हवा भरे टायर इसमें लगाए। इससे साइकिल की सवारी ज्यादा सुगम और सुरक्षित हो गई।
अन्य चीजों की तरह साइकिल के क्षेत्र में भी तरह-तरह प्रयोग हुए। इनके विचित्र परिणाम हुए। एक बड़ी साइकिल बनाई गई, जो 23 फीट लम्बी थी और उसे 10 लोग मिलकर चलाते थे। इसका वजन लगभग 140 किलो था।
डायमंड जिम ब्रेडी नामक प्रेमी ने अपनी अभिनेत्री प्रेमिका लिलियन रसेल को एक विशेष साइकिल उपहार में दी थी, जिसका मूल्य उस समय 10,000 पौंड था। उस पर सोने की परत चढ़ी थी तथा हैंडल में मोती जड़े थे। पहियों की स्पोक पर हीरे, मणिक आदि जड़े गए थे।
साइकिलों पर प्रयोग जारी रहे। कुछ आविष्कारकों ने इसमें दो से अधिक पहिए लगाने का प्रयास भी किया। कुछ ने इसे नाव में लगाकर पानी में साइकिल चलाने का प्रयास भी किया। कुछ ने ऐसी साइकिल बनाने का प्रयास किया, जिस पर पूरा परिवार बैठकर जा सके। कुछ ने इसमें भाप का इंजन जोड़ने का भी प्रयास कर डाला। एक अंग्रेज आविष्कारक ने सौर ऊर्जा से चलने वाली साइकिल बनाई, जो धूप में | अपने आप चलती थी, पर बादल आते ही इसके पैडल चलाने पड़ते थे।
साइकिल की गति बढ़ाने के भी प्रयास किए गए। अनेक लोगों ने साइकिल पर अपने देश का भ्रमण किया। ग्यारह वर्षीय बेकी गोर्टन ने। 6 जून, 1973 को वाशिंगटन से यात्रा प्रारम्भ की और 22 जुलाई को बोस्टन में समाप्त की। हमारे देश में तो अनेक प्रकार के संदेश लेकर साइकिल चालक आए दिन दूर-दूर तक यात्रा करते हैं।
थॉमस स्टीवेंस ने साइकिल पर लगभग पूरे विश्व की यात्रा कर डाली। अप्रैल 1884 मेंसेन फ्रांसिस्कों से वह चला और अमेरिका की यात्रा पूरी करके जहाज द्वारा यूरोप पहुंचा। वहां से साइकिल से ही यूरोप व
एशिया की यात्रा पूरी करके जहाज द्वारा वह सेन फ्रांसिस्को पहुंच गया। उस ऐतिहासिक यात्रा में तीन वर्ष से कुछ ही कम समय लगा।
जहां एक ओर तेज से तेज गति में साइकिल चलाने का रिकॉर्ड है, वहीं धीमी से धीमी गति में साइकिल चलाने का भी रिकॉर्ड है। सन् 1965 में जापान के टी. मिस्सुसी ने सबसे धीमी गति का रिकॉर्ड बनाया। वे पांच घंटे पच्चीस मिनट तक साइकिल पर सवार रहे, पर एक इंच भी आगे नहीं बढ़े। पैडल आगे-पीछे करके साइकिल का सन्तुलन उन्होंने बनाए रखा।
जमीन और पानी पर साइकिल चलाने के अलावा हवा में भी इसे चलाने का प्रयास किया गया, पर वह विफल रहा। यहां रोचक बात यह | है कि हवाई जहाज बनाने वाले राइट बंधु पहले साइकिल मरम्मत किया करते थे।
आम आदमी का सहारा और लोकप्रिय वाहन साइकिल अभी भी शोध का विषय है।
पहिये का अविष्कार से जुडी बहुत ही अच्छी जानकारी प्रदान की गयी है .