सुभाष चंद्र बोस
Subhash Chandra Bose
निबंध नंबर :- 01
23 जनवरी 1897 में कटक, उड़ीसा में एक क्रांतिकारी का जन्म हुआ। पिता जानकीदास बोस और माता प्रभावती ने बचपन से ही अपने पुत्र में सात्विक मूल्यों को बढ़ावा दिया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद से बहुत प्रभावित थे। वे श्री लोकमान्य तिलक और श्री अरविंद के विचारों से अधिक और गांधी जी के तरीकों से कम सहमत थे।
“तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” यह नारा लिए वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे प्रभावशाली कांग्रेस से जुड़ कर काम शुरू किया। उन्हें कांग्रेस का प्रधान भी चुना गया। परंतु विचारों की भिन्नता के कारण वे अलग हो गए।
1947 में उन्होंने इंडियन नैशनल आर्मी का गठन किया जो भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में ब्रिटिश सरकार की कमर तोड़ने में जुटी थी। इसका मुख्य उद्देश्य उत्तर-पूर्व से अंग्रेजों को खदेड़ते हुए दिल्ली पहुँचाना था। अतः। इनका नारा था ‘दिल्ली चलो’।
17 अगस्त 1945 में वायु दुर्घटना में नेताजी परलोक सिधार गए परंतु ‘जय हिंद’ का उनका नारा आज भी हमें प्रेरित करता है।
निबंध नंबर :- 02
अमर सेनानी – सुभाष चन्द्र बोस
Amar Sainani – Subhash Chandra Bose
भूमिका- देश की स्वतन्त्रता के लिए भारतीयों ने जिस महायज्ञ को आरम्भ किया था उसमें जीवन की आहुति देने वाले, माँ भारती के सपूतों में सुभाष चन्द्र बोस का नाम भारतवासी श्रद्धा से याद करते हैं। वीर पुरुष एक ही बार मृत्यु का वरण करते हैं लेकिन वे अमर हो जाते हैं। उनके यश और नाम को मृत्यु मिटा नहीं सकती है। सुभाषचन्द्र बोस ने भारत की परतन्त्रता की बेड़ियों को काटने को लिए जो मार्ग अपनाया था वह सर्वथा अलग था।
जीवन परिचय- इनका जन्म 20 जनवरी सन 1897 में उडीसा राज्य के कटक जिले के कोडो लिया ग्राम म हुआ। इनके पिता का नाम रायबहादर जानकी नाथ और माता का नाम प्रभावती था। शैशव से ही बालक अत्यन्त गंभीर था। उसका मन अत्यन्त कोमल था और दूसरों के दु:खों से पीडित हो जाता था। बचपन से ही उन्हें अंग्रेजों औरणा थी। सभाष की प्राथमिक शिक्षा यूरो पियन स्कूल से ही आरम्भ हुई। कलकत्ता विश्वविद्यालय की मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे प्रेसीडेंसी कॉलेज में गए। इसी कॉलेज में अंग्रेज़ प्रोफेसर ओटेन ने जब भारतीयों का अपमान किया तो सुभाष ने कक्षा में ही उसे थप्पड़ जड़ दिया। परिणाम स्वरूप सुभाष को कॉलेज से निकाल दिया। उनके इस व्यवहार से उनके पिता दु:खी हुए। सुभाष जी स्वामी विवेकानन्द के भाषण से इतने प्रभावित हुए कि वे घर छोड़ कर सत्य की खोज में निकल पड़े। अनेक स्थानों पर भटकते हुए उन्होंने ने जब साधु-सन्यासियों के व्यवहार देखे तो निराश होकर वे घर लौट आए। खोए हुए पुत्र को पाकर माता-पिता हर्ष से झूम उठे। कलकत्ता विश्व विद्यालय से इन्होंने बी० ए० आनर्स की उपाधि धारण की। पिता जी ने इसके पश्चात् सुभाष को आई० सी० एस० की प्रतियोगिता में बैठने के लिए लन्दन के कैम्ब्रिज कॉलेज में भेज दिया। आठ महीने की अवधि में ही सुभाष जी ने यह परीक्षा पास कर ली। लेकिन विदेशी सत्ता के अधीन कार्य करने से उन्होंने स्पष्ट इन्कार कर दिया।
राजनीतिक जीवन- लन्दन में रहते हुए सुभाष निरंतर देश में गुलामी के कारण छटपटाते रहे। स्वदेश लौटने पर राजनीति में कूद पड़े। जलियांवाला बाग के हत्याकाण्ड और रौलट एक्ट ने देशवासियों पर वज्रघात किया। महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन की अपील ने देश भर में तूफान मचा दिया। सन् 1921 में सुभाष ने स्वयं सेवकों के संगठन का कार्य आरम्भ किया। बंगाल सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सैनिक संगठनों को गैर कानूनी करार दे दिया और सुभाष जी को छ: मास की कारावास की सज़ा मिली। जेल से रिहा होकर वे घर गए लेकिन उत्तरी बंगाल की भीषण बाढ़ ने उन्हें चैन से न बैठने दिया। लार्ड लिंटन के दमन चक्र का विरोध करने के आरोप में सुभाष का गिरफतार कर लिया गया और बर्मा की जेल में भेज दिया गया। मद्रास के कांग्रेस अधिवेशन में सुभाष को राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया। सुभाष की गतिविधियों से बिट्रिश सरकार बहुत आतंकित थी। 1930 में उन्हें कानून भंग करने के आरोप में जेल भेज दिया गया। जेल में सुभाष जी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और स्वस्थय लाभ के लिए सुभाष को यूरोप जाने की अनुमति मिली।)
विदेश में- बेनिस और बिएना में कुछ दिन रहने के बाद वे स्विट्जर लैण्ड की ओर बढ़े। जेनेवा, दक्षिणी फ्रांस, मिलन और आस्ट्रिया में रहकर भी सुभाष अपने तूफानी कार्यक्रम चलाते रहे और स्वतन्त्रता की मशाल जलाते रहे । विदेश से जब वे वापिस आए तो पिता का देहावसान हो गया। बीमारी के कारण पुनः विदेश जाना पड़ा। अंग्रेज़ी सरकार ने इन्हें घर में ही नजरबन्द कर दिया। अन्त में अंग्रेजी सरकार की आँखों में धूल झोंकते हुए भेस बदल कर सुभाष घर से भाग खड़े हुए। सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया और नारा दिया- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। विश्व के 19 राष्ट्रों ने आजाद हिन्द फौज को स्वीकार कर लिया था। कहा जाता है कि जब वायुयान द्वारा 19 अगस्त 1945 को सुभाष बाबू जापान जा रहे थे तो उनका जहाज दुर्घटना ग्रस्त हो गया और सुभाष बाबू कहीं सदा के लिए अदृश्य हो गए। ।
उपसंहार- यद्यपि सुभाष बाबू स्वतन्त्रता का सूर्य देखने से पहले ही चल बसे लेकिन गुलामी की अन्धेरी रात को उन्होंने ही चीरा था।
निबंध नंबर :- 03
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
Netaji Subhash Chandra Bose
सुभाषचन्द्र बोस बचपन से ही बड़े मेधावी और स्वाभिमानी थे। एंट्रेंस सभा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के पश्चात् वह कलकत्ता के कॉलेज में पढ़ने लगे। इस कॉलेज में भारतीय विद्यार्थियों को अंग्रेज़ अध्यापक और अंग्रेज़ विद्यार्थी तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। यह बात सुभाषचन्द्र बोस सहन नहीं कर सके। जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। बाद में उन्हें कोलकाता (कलकत्ता) विश्वविद्यालय में प्रवेश मिला। वहाँ से उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई० में कटक में हुआ था। उनके पिता रायबहादुर जानकीदास बोस नगरपालिका और जिला बोर्ड के प्रधान होने के साथ-साथ एक योग्य वकील भी थे। उनकी माता प्रभावती बोस धार्मिक विचारों वाली महिला थीं।
उन दिनों जब देश में क्रांति को आग सुलग रही थी और गाँधीजी अंग्रेजों की दमन नीति का विरोध कर रहे थे तब सुभाषचन्द्र के मन में देश-प्रेम हिलोरें ले रहा था। उनके पिता चाहते थे कि उनका पुत्र आई.सी.एस. होकर सरकारी नौकरी में उच्च पद प्राप्त करे। अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए नेताजी इंग्लेण्ड और उन्होंने आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। इसके बाद उन्हाने अंग्रेजों की नौकरी करना स्वीकार नहीं किया और भारत वापस लौट आए।
सुभाषचन्द्र बोस ने चितरंजनदास को अपना राजनैतिक गुरु बनाया। सुभाष में अद्भुत संगठन शक्ति थी। उनकी इस संगठन-शक्ति को देखकर अंग्रेज सरकार हिल गई। प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आने की विरोध करने के कारण उन्हें गिरफ्तार करके छः महीने के लिए जेल में डाल दिया गया। 1938 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। कुछ समय बाद वे कांग्रेस से अलग हो गए और ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ नामक दल का गठन कर लिया। तब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो चुका था। सुभाषचन्द्र बोस जेल में बंद होकर नहीं रहना चाहते थे। इसलिए वह अंग्रेज़ों की आँखों में धूल झोंककर जेल से निकल भागे। वहाँ से जर्मनी गए और हिटलर से मिले। फिर वे एक पनडुब्बी में बैठकर सिंगापुर पहुंचे। वहाँ उन्होंने ‘आज़ाद हिन्द फौज’ बनाई और उसका नेतृत्व किया। यहीं से वह ‘नेताजी’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका नारा था-“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।”
आजाद हिन्द फौज ने ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर दी। सन् 1945 में युद्ध का पासा पलटने लगा और आज़ाद हिन्द फौज को कई जगह पीछे हटना पड़ा। ऐसा माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को एक हवाई दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गई, लेकिन अधिकांश लोग इस बात को सच नहीं मानते और आज भी संसार उनकी वापसी की प्रतीक्षा कर रहा है। नेताजी का स्वप्न 15 अगस्त, 1947 को साकार हुआ, जब भारत को अंग्रेज़ों से आज़ादी मिली। सभी भारतीयों को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर गर्व है।