प्रदूषण की समस्या
Pradushan Ki Samasya
मानव जीवन एक तरफ विकास की सभी सीमाएँ तोड़ते हुए ऊपर जा रहा है। तो दूसरी ओर प्रदूषित वातावरण का गहरा गड्ढा भी अपने लिए खोद रहा है। ईश्वर ने हमें एक संतुलित वातावरण प्रदान किया था। समय पर ऋतुओं का आवागमन होता था और प्रकृति में सभी पदार्थों की एक निश्चित मात्रा होती थी। मनुष्य के असीमित वैज्ञानिक प्रयोगों और विकास के नाम पर हो रहे क्रियाकलापों ने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है।
जल के सभी स्त्रोत रासायनिक कचरे का घर हो गए हैं। नदी, तालाब उद्योगों के कचरे से और समुद्र तेल के रिसाव से प्रदूषित हो रहे हैं। जल में रहनेवाले प्राणी बड़ी संख्या में किनारों पर मृत पाए जाते हैं।
वाहनों, कारखानों व परमाणु प्रयोगों से निकलता धुंआ वायुमंडल का ह्रास करता जा रहा है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण में ऑक्सीजन कार्बनडाइआक्साइड का संतुलन बिगड़ रहा है और वर्षा की भी कमी रहने लगी है। मनुष्य निरंतर नई बीमारियों का शिकार होता जा रहा है। फेफड़ों व सांस की बीमारी, चर्मरोग, कई तरह के कैंसर आज के समाज में फैल गए। हैं।
सरकार प्रदूषण की रोकथाम के लिए निरंतर प्रयास कर रही है परंतु हमारे योगदान के बिना यह असंभव है। वृक्षारोपण, पॉलीथीन का बहिष्कार व कूड़े-कचरे का सही निष्कासन प्रदूषण से छुटकारे के कुछ तरीके हैं।