परिश्रम का महत्व
Parishram Ka Mahatva
निबंध नंबर :- 01
आलस्य मानव शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है। यह किसी भी कार्य को करने में एक रुकावट है। आलस्य मनुष्य की बुधि को मंद कर उसे सुस्त बना देता है। एक बहुत पुरानी कहावत है कि सोए हुए शेर के मुख में हिरन नहीं आता, उसे भोजन के लिए परिश्रम करना पड़ता है। उसे हिरन के पीछे भागना ही पड़ेगा।
जीवन में अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए हम भाग्य पर निर्भर नहीं रह सकते, हमें परिश्रम करना ही पड़ता है। जिस तरह स्वतंत्र भारत की खुली हवा स्वतंत्रता सेनानियों के कठिन परिश्रम का फल है। उसी तरह हमारा साहित्य प्रेमचंद, सरोजिनी नायडु, सूरदास, टैगोर जैसे महान कथाकारों के परिश्रम का परिणाम है।
लाल बहादुर शास्त्री, राणा प्रताप, शिवाजी इन सभी ने कई लड़ाइयाँ। लड़ कठिन तपस्या का परिचय दिया।
अपनी असफलता का दोष भाग्य पर डालकर निराश बैठने से हम कभी अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते। उसके लिए एकमात्र साधन परिश्रम ही है।
विद्यार्थी जीवन में हम प्राय: जो भी सीखते हैं वह हमारे चरित्र में निहित हो जाता है। अतः परिश्रम जैसे सद्गुणों को अपनाकर हमें अपना भावी जीवन भी प्रकाशमय बनाना चाहिए।
निबंध नंबर :- 02
परिश्रम का महत्व
Parishram ka Mahatva
सृष्टि के विकास का मूलमंत्र है-परिश्रम। श्रम के बल पर ही संसार के समस्त कार्य संचालित होते हैं। संसार में सभी मनष्य कर्म के अपार हैं। मानव ने आदिम युग से आज तक का सभ्य जीवन परिश्रम प्राप्त किया है।
का दूसरा नाम श्रम है। मानव शरीर और मस्तिष्क से जो भी करता है, वह श्रम ही है। श्रम दो प्रकार के होते हैं शारीक मानसिक श्रम। शरीर से जो श्रम किया जाता है, उसे शारीरिक श्रम हैं और जो श्रम बुद्धि या मन से किया जाता है उसे मानसिक श्रम कहते हैं।
जीवन में परिश्रम का महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन में सुख और समृद्धि श्रम पर आधारित है। अथक परिश्रम से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। फलतः श्रम को जीवन की सफलता की कुंजी कहा जाता है। श्रम वह सौपान है जिस पर चढ़कर मनुष्य संसार के सभी सुखों को प्राप्त कर सकता है। मानवता का विकास और वैज्ञानिक उन्नति परिश्रम का ही परिणाम हैं।
जिस प्रकार खुशबू के बिना पुष्प बेकार है, उसी प्रकार श्रम के बिना जीवन व्यर्थ है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में श्रम का महत्व दृष्टिगोचर होता है। अध्यापक परिश्रमी छात्र से सर्वदा प्रसन्न रहते हैं। मालिक मेहनती सेवक से संतुष्ट रहता है। वृद्ध लोग परिश्रम से सेवा करने वाले बच्चों से प्रसन्न रहते हैं। कोई भी छात्र परीक्षा में प्रथम स्थान परिश्रम से ही प्राप्त करता है।
इसी प्रकार प्रतियोगी परीक्षाओं में परिश्रम द्वारा उत्तीर्ण होने पर ही प्रतियोगियों को सफलता मिलती है और वे सरकारी उच्च पद प्राप्त करते हैं। परिवार के परिश्रमी सदस्य के हाथ में ही घर की बागडोर होती है। इस प्रकार परिश्रम की अनिवार्यता जीवन के सभी क्षेत्रों में देखी जा सकती है।
गीता में भी लिखा है-“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्।” इस श्लोक में भी परिश्रम की महत्ता ही प्रतिपादित की गई है। इसी प्रकार अंग्रेजी की एक कहावत है- “God helps those, who helps themselves” अर्थात् ईश्वर उन्हीं की मदद करता है, जो अपनी स्वयं करते हैं। आलसी और अकर्मण्य मनुष्य पृथ्वी पर भार-स्व आलस्य मनुष्य का प्रबल शत्रु है। और हाथ पर हाथ रखकर बैठना की निशानी है। मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। और के परिश्रम के बल पर ही वह अपने भाग्य को बदल सकता है।
अतः संसार में महान और अमर बनने के लिए परिश्रम अति आवश्यक है और परिश्रम से ही प्रत्येक व्यक्ति और देश की उन्नति संभव है।
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