मेरी बहादुरी
Meri Bahaduri
एक दिन वर्षा की ऐसी झड़ी लगी थी कि कुछ दिखाई नहीं पड़ता था। दोपहर का समय काली रात-सा अनुभव होता था। पाठशाला से लौटते हुए, वर्षा से बचने के लिए मैं एक टूटे घर की छत के नीचे खड़ा हो गया।
पास ही एक छोटा बच्चा खड़ा था। वह अचानक फिसल गया और पास के एक खुले गटर की तरफ बहने लगा। वर्षा की वजह से सड़कें डूब गई थीं और चलना असंभव था। मैं संभलते हुए उस बच्चे की ओर बढ़ा और उसका हाथ पकड़ लिया।
पानी का बहाव हम दोनों को गटर के मुँह की ओर ले जा रहा था। मैं पूरा जोर लगाए अपनी जगह पर खड़ा था। इतने में कुछ लोगों ने हमें देखा और हमें बचाया। सभी मेरी बहादुरी की बड़ाई करने लगे। एक सज्जन मुझे घर छोड़ने आए और माँ से सब बताया। वे अखबार में काम करते थे और मेरा नाम बहादुरी पुरस्कार के लिए देनेवाले थे।
इस बात से मैंने अपने परिवार का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया।
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