एक रात बिना बिजली के
Ek Raat Bina Bijali ke
सामान्यतः हम सभी रात में भोजन कर, कुछ टेलीविजन देख अपने घरों में सो जाया करते हैं। परंतु उस सितंबर की रात अचानक नौ बजे बिजली गुल हो गई। सोसाइटी के जेनरेटर में भी कुछ समस्या आ गई थी। ठीक करने में कितना समय लगना था, पता नहीं चल पा रहा था।
बड़े लोग बेचैनी से सड़कों पर उतर आए। धीरे-धीरे हम बच्चे भी सोसाइटी के मैदान में एकत्रित हो गए। चाँदनी रात में मध्यम गति से हवा चल रही थी। हमारे शोर से धीरे-धीरे सोसइटी में दिन-सा प्रतीत होने लगा।
पहले सभी बड़े बच्चे मोमबत्तियाँ जला अंत्याक्षरी खेलने लगे। फिर हमने आँख मिचौली का कार्यक्रम बनाया। राजीव भइया की पकड़ने की बारी थी। अँधेरे में किसी को भी खोज पाना असंभव था। थक कर उन्होंने ही हार मान ली।
अब बैठे-बैठे कुछ करना था तो हम डरावने किस्से सुनाने लगे। एक से बढ़कर एक किस्से के बाद हमारे पसीने छूटने लगे। अचानक रोशनी हो गई। हम सभी चिल्ला पड़े। पता चला कि आधी रात बीत चुकी
थी और बिजली चालू हो गई थी।
अपने-अपने घरों को लौट हम तुरंत बिस्तर में दुबक कर सो गए।