एक फूल की आत्मकथ
Ek Phool ki Atmakatha
प्रकृति की विशाल संपदा का एक सुंदर हिस्सा हूँ, मैं एक गुलाब का फूल हूँ। लाल और खुशबूदार फूल जिसकी शान में कवि कहते नहीं थकते। जिसे भगवान के चरणों में शोभित किया जाता है और जिसे चाचा नेहरू सदा सीने से लगाए रहते थे।
मैं अपनी डाल पर काँटों के साथ रहता हूँ। मुझे तोड़ने के प्रयास में कई बार आपको काँटें भी चुभ जाते हैं। यह आपको जीवन में बहुत ऊँची शिक्षा देता है कि सुंदर लक्ष्य पाने के लिए काँटों वाले पथ से होकर जाना पड़ता है।
मैं सौंदर्यवर्धक भी हूँ। जल में मुझे मिलाकर गुलाबजल तैयार किया जाता है जो अपने में कई सौंदर्य मर्म छिपाए हुए है। राजाओं को स्नान करवाने में मेरा विशेष योगदान रहा है।
शादी, पूजन या शोक सभा, मेरे बिना यह सब कभी संपन्न नहीं होते। नेताओं के भाषणों में मैं भी उनके कंठ के निकट बैठ उनके विवादों का ज्ञान पाता हूँ। गुलदस्तों में शोभित कर लोग मेरा प्रयोग दूसरों का मन मोहने के लिए करते हैं।
इस सम्मान के बाद जब मेरी काया मुरझाने लगती है तो मुझे कचड़े के ढेर में डाल दिया जाता है। यदि किसी क्यारी या बगीचे के कोने में डालें तो मैं भी सम्मानपूर्वक अपने प्राण त्याग सकें।
Too short it must be big