एक कलम की आत्मकथा
Ek Kalam Ki Atmakatha
सुंदर कद-काठी का मैं एक नीली कलम हूँ। रवि के पिता जी मुझे ज्ञान देवी सरस्वती के पूजा के दिन घर ले आए थे। मेज के ऊपर मुझे रख उन्होंने बताया कि सभी मुझे केवल विशेष कार्यों के लिए प्रयोग करेंगे।
रवि की बड़ी बहन को भूकंप के ऊपर प्रोजेक्ट बनाने को मिला। उसने पिता जी की आज्ञा से मेरा प्रयोग किया। भूकंप की कहानियाँ और लोगों की पीड़ा दिल दहला देने वालीं थीं। लिखते हुए मेरा मन भी रोने लगा। जब हम राहत कार्यों के विषय पर आए तो मुझे यह सोच कर बहुत हर्ष हुआ कि मनुष्यता अभी भी जीवित है।
रवि की माता जी सुंदर कविताएँ रचती हैं। पेड़, पहाड़, चिड़िया और कोयल को लयबद्ध करने का भार मेरे नन्हें कंधों पर आता है। साहित्य की ओर मेरा योगदान मुझे गौरवान्वित अनुभव कराता है।
रवि कभी-कभी मुझे अपनी परीक्षा में ले जाता है। तब मुझे अपना उत्तरदायित्व निभाना पड़ता है। बिना रुके लिखते जाना ही मेरा प्रण रहता है।
रवि के पिता जी मुझे अपनी फाइलों में टैक्स जोड़ने के लिए प्रयोग करते हैं। तब मुझे सबसे अधिक डर लगता है। मैं उनका कार्य बहत ध्यान से और धीरे-धीरे करता हूँ।
इतने भिन्न कार्यों को करने का मेरा अनुभव मुझे ज्ञानी बना रहा है।