चंद्रशेखर आजाद
Chandra Shekhar Azad
निबंध नंबर -: 01
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ऐसा नाम है जो साहस, वीरता और अनुशासन का प्रतीक है। मध्यप्रदेश के झबुआ जिले में। एक साधारण परिवार में जन्मे वे एक साहसी बालक थे। उनका मन पढ़ाई में कभी नहीं लगा। न ही उनके स्वभाव में एक जगह टिकना था।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड के समय वे दस-ग्यारह वर्ष के थे। अंग्रेजी शासकों ने चार दीवारी में बंद हिंदुस्तानियों पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसा, बच्चों, महिलाओं, वृद्ध वर्ग और आदमियों की निर्मम हत्या की थी। इस हादसे से उनके कदम स्वतंत्रता संग्राम की ओर बढ़ गए।
बड़े होते-होते वे क्रांतिकारी दल के नेतृत्व का पूरा कार्यभार संभालने लगे। वे नित नए वेश बदल अंग्रेजों को चकमा देते और कभी उनके हाथ न आते।
उन्होंने कई क्रांतिकारी प्रयोजनों को अंजाम दिया। भगत सिंह, सहदेव, राजगुरु जैसे सेनानियों को उन्होंने प्रेरणा व मार्गदर्शन भी दिया।
क्रांति को नए शिखरों तक पहुँचाते हुए एक दिन वे दुश्मन के बीच घिर गए। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उन्होंने स्वयं को गोली मार ली परंतु दुश्मन की गोली अपने शरीर को छूने भी न दी।
निबंध नंबर -: 02
चन्द्रशेखर आजाद
Chandra Shekhar Azad
चन्द्रशेखर आज़ाद एक सच्चे क्रांतिकारी देशभक्त थे। उन्होंने भारत-माता की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। सन् 1920 की बात है, जब गाँधीजी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में सैंकड़ों देशभक्तों में चन्द्रशेखर आजाद भी थे। जब मजिस्ट्रेट ने बुलाकर उनसे उनका नाम, पिता का नाम और निवास स्थान पूछा तो उन्होंने बड़ी ही निडरता से उत्तर दिया-“मेरा नाम है-आजाद; पिता का नाम है-स्वतंत्रता और मेरा निवास है-जेल।” इससे मजिस्ट्रेट आगबबूला हो गया और उसने 14 वर्षीय चन्द्रशेखर आज़ाद को 15 कोड़े लगाए जाने का आदेश दिया।
इस महान् क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में भावरा गाँव में हुआ था। इसी गाँव की पाठशाला में उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई। परंतु उनका मन खेलकूद में अधिक था। इसलिए वे बाल्यावस्था में ही कुश्ती, पेड़ पर चढ़ना, तीरंदाज़ी आदि में पारंगत हो गए। फिर पाठशाला की शिक्षा पूर्ण करके वे संस्कृत पढ़ने के लिए बनारस चले गए। परंतु गाँधीजी के आह्वान पर वे अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। गाँधीजी के अहिंसक आंदोलन वापस लेने के पश्चात् 1922 में वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए। उनकी प्रतिभा को देखते हुए 1924 में उन्हें इस सेना का कमांडर-इन-चीफ बना दिया गया।
इस एसोसिएशन की प्रत्येक सशस्त्र कार्रवाई में चन्द्रशेखर हर मोर्चे पर आगे रहते थे। पहली सशस्त्र कार्रवाई 9 अगस्त, 1925 को की गई। इसका पूरी योजना राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा चन्द्रशेखर की सहायता से की गई थी। इसे इतिहास में में काकोरी ट्रेन कांड के नाम से जाना जाता है। इस योजना के अंतर्गत सरकारी खजाने को दस युवकों ने छीन लिया था।
पुलिस को इस योजना का पता लग गया था। इसमें आजाद का भागीदारी पाई गई। अंग्रेज सरकार ने इसे डकैती मानते हुए राम प्रसाद और अशफाकउल्ला को फाँसी की सज़ा और अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई।
अगली कार्रवाई 1926 में की गई, जिसमें वायसराय की रेलगाड़ी को बम से उड़ा दिया। इसकी योजना भी चन्द्रशेखर आजाद ने बनाई थी। इसके पश्चात् लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर में सांडर्स की हत्या कर दी गई। सांडर्स की हत्या का काम भगत सिंह को सौंपा गया था, जिसे उसने पूरा किया और बच निकलने में सफल हुए। इस एसोसिएशन की अगली कारगुजारी सेंट्रल असेंबली में बम फेंकना और गिरफ्तारी देना था। इस योजना में भी चन्द्रशेखर आजाद की भूमिका थी। इस प्रकार वे अंग्रेज सरकार को भारत से भगाने और भारत को उनसे आजाद कराने के लिए अनेक योजनाएँ बनाते रहे और हर योजना में वे सफल होते रहे।
परंतु 27 फरवरी, 1931 को सुबह साढ़े नौ बजे चन्द्रशेखर आज़ाद निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ऐल्फ्रेड पार्क में एक साथी कामरेड से मिलने गए। वहाँ सादा कपड़ों में पुलिस ने उन्हें घेर लिया। उन्होंने अंग्रेज़ पुलिस से खूब लोहा लिया। फिर जब उनकी छोटी-सी पिस्तौल में एक गोली बची तो उन्होंने उसे अपनी कनपट्टी पर रखकर चला दी और इस लोक को छोड़ गए। चन्द्रशेखर आजाद ने शपथ ली थी कि वे अंग्रेजों की गोली से नहीं मरेंगे। इस प्रकार उन्होंने अपने आजाद नाम को सार्थक किया। जीवन के अंतिम क्षण तक वे किसी की गिरफ्त में नहीं आए। चन्द्रशेखर आज़ाद एक व्यक्ति नहीं, वे अपने में एक आंदोलन थे। आज हम उन्हें एक महान् क्रांतिकारी के रूप में याद करते हैं।