भ्रष्टाचार
Bhrashtachar
भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट आचरण जिसके अंतर्गत रिश्वत, कपट, धोखाधड़ी जैसे कुविचार पनपते हैं।
भ्रष्टाचार लालची वाक्तियों की पूंजी है जिन्हें अपनी सुख-सुविधाएँ एकत्रित करने के लिए साधन की परवाह नहीं होती।
जिन नेताओं को जनता वोट द्वारा चुनती है वे अपहरण, हिंसा, रिश्वतखोरी जैसे काम करते हैं। दुकानदार माप-तोल में, हिसाब लगाने में गड़बड़ी करते हैं, खाने की चीजों में मिलावट कर जनता को शरीरिक हानि भी पहुँचाते हैं।
पुलिस अधिकारी, सरकारी कार्यकर्ता कठिन से कठिन कार्य धन के बल पर कर देते हैं। अस्पतालों में भी भ्रष्ट अधिकारियों के कारण जीवन-मृत्यु का लेन-देन चलता रहता है।
देशभक्ति और सामाजिक उत्थान से परे उनका मन केवल स्वार्थ में लगा रहता है। ऐसे आचरण के रहते भारतवर्ष यदि विकास पथ पर दो कदम आगे चला भी जाए तो वह तुरंत एक कदम पीछे भी आ जाएगा।
विद्यार्थी सजग हो अपने आसपास भ्रष्ट कार्यों को तुरंत रोकें और स्वयं में भी सदाचार के गुण लाएँ तो समाज की नई नींव रखी जा सकती है। यह इसलिए क्योंकि बच्चे ही समाज का भविष्य होते हैं।