वसंत ऋतु
Basant Ritu
निबंध नंबर : 01
अनेक ऋतुओं में हर ऋतु अलग विशेषता ले कर आती है। इनमें से वसंत को ‘ऋतुराज’ कहा जाता है। इसका कारण यह है कि वसंत में प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है।
फरवरी और मार्च, वसंत ऋतु के मुख्य मास हैं। शीत ऋतु का प्रभाव कम होने से जीवन पुन: गति में आ जाता है। इस ऋतु में दिन-रात लगभग समान होते हैं। पेड़ों पर नए पत्ते आने लगते हैं। पक्षी भी ठंड के बाद चहचहा कर आकाश में इधर-उधर उड़ने लगते हैं। रंग-बिरंगे फूल, बगीचों के सौंदर्य में चार चाँद लगाते हैं। सुंदर तितलियाँ भी फूलों पर नाचती दिखाई पड़ती हैं।
वसंत ऋतु में ताजी, सुगंधित हवा में सुबह की सैर बहुत उत्साहित करती है। न अधिक गरमी होती है और न अधिक सरदी, अत: शरीर खुला। महसूस होता है।
वसंत ऋतु में वसंत पंचमी का त्योहार आता है। इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं, मेलों का आयोजन करते हैं और पतंगबाजी भी होती है। इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती का पूजन कर, पीला हलवा भी बाँटते हैं।
वसंत ऋतु उत्साह, उमंग और उल्लास की ऋतु है। कवि इस ऋतु की सुंदरता अनेक कविताओं द्वारा स्पष्ट करते हैं। मैं भी अपने बगीचे में कई रंगों के फूल लगाकर मोहित होता हूँ।
निबंध नंबर : 02
बसन्त ऋतु
Basant Ritu
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत। मैं अग जग का प्यारा वसंत।।
मेरी पग ध्वनि सुन जग जागा। कण-कण ने छवि मधुरस माँगा।
भूमिका- परिवर्तन का चक्र निरन्तर गतिशील रहता है। जिस प्रकार रात और दिन का आवागमन है उसी प्रकार प्रकृति में भी बसन्त, वर्षा, शिशिर, हेमन्त, शरद आदि ऋतुओं का चक्र गतिशील रहता है। इन ऋतुओं के परिवर्तन के कारण ही किसान अलग-अलग फसलों की बुआई करता है। प्रत्येक वस्तु का अपना अपना महत्त्व है।
इन सब ऋतुओं में बसन्त को ‘ऋतराज’ कहा गया है। बसन्त ऋतु सचमुच ही प्रकृति का योवन है। इस शब्द की. उत्पत्ति संस्कृत के शब्द ‘वस’ से मानी जाती है जिसका अर्थ है चमकाना अर्थात् बसन्त के आगमन पर सम्पूर्ण प्रकृति अपने यौवन पर आ जाती है।
बसन्त का आगमन तथा सन्दर्भ- बसन्त ऋत फरवरी, मार्च के महीने में आती है। इस ऋतु का समय लगभग चालीस दिन का होता है। इन दिनों में शरद ऋतु का प्रभाव कम हो जाता है तथा न अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी । शरद ऋतु में कड़ाके की सर्दी पड़ती है जिसे हरियाली सहन नहीं कर पाती। फूल मुरझा जाते हैं और पत्ते पीले पड़ जाते हैं। हेमन्त ऋतु में पतझड़ होता है तथा पत्ते झड़ जाते हैं। इसके बाद बसन्त ऋतु का आगमन होता है। पृथ्वी का रोम-रोम सिहर उठता है। चारों और उल्लास का सागर उमड़ पड़ता है। सोई हुई कलियां आँखें झपकने लगती हैं। चारों ओर खेतों में हरियाली ही दिखाई देती है। सरसों फूली नहीं समाती। पेड़ों पर नएनए पत्ते निकल आते हैं, आम पर सुनहरा बौर आ जाता है तथा कोयल की कूक सुनाई देने लगती है। भौरे गाते हैं, तितलियां नाचती हैं। सारा संसार अपार आनन्द में मग्न हो जाता है। आड़, अलूचे फूलों के भार से झुक जाते हैं। सरसों के फूलों को देखकर ऐसा लगता है मानो पृथ्वी ने पीली चादर ओढ़ ली हो।।
बसन्त ऋतु और स्वास्थ- यह ऋतु स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त उत्तम है। बसन्त में प्रतिदिन प्रातः भ्रमण एक रसायन माना गया है। इस ऋतु में शीतल एवं सुगन्धित पवन चलती है जिसमें भ्रमण करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इससे आँखों की रौशनी बढ़ती है। मन की मलिनता जाती रहती है।
ऐतिहासिक तथा पौराणिक सन्दर्भ- बसन्त ऋतु का आरम्भ बसंत पंचमी के त्यौहार से होता है। किवदन्ती है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। यह त्यौहार समस्त उत्तर भारत में हर्ष एवं उल्लास से मनाया जाता है। बसन्त पंचमी को ही ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इसी दिन वीर हकीकत राय ने हिन्दू धर्म की बलिवेदी पर अपने प्राणों की बलि दी थी।
उपसंहार- बसन्त ऋतु में बसन्त-पंचमी का दिन विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन लोग सरसवती का पूजन भी करते हैं। प्राचीन काल में लोग गुरुकुलों और विद्यालयों में इस दिन उत्सव मनाते थे। इसदिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं तथा घर में भी पीले चावल बनाते हैं। इसी दिन दशमेश पिता गुरु गोबिन्द सिंह के शिशओं ने धर्म के लिए अपना जीवन समर्पित किया था। अत: बसन्त का आगमन वीरों के त्याग के बसंती चोले का प्रतीक भी माना जाता है। इसीदिन आकाश पतंग प्रेमियों की बहुरंगी पतंगों से भर जाता है। यह त्यौहार, यह उत्सव मानव को संदेश देता है कि जीवन में पतझड़ ही नहीं रहता है अपितु सुख का बसन्त भी आता है।
veri nice post