बंकिमचंद्र चैटर्जी
Bankim Chandra Chatterjee
बंकिमचंद्र चैटर्जी वो नाम है जिसने हमारी मातृभूमि के लिए ‘वंदे मात्रम’ का नारा दिया। वे उन्नीसवीं सदी के महान कथाकार थे। वे स्वयं ही जनसमुदाय को उत्तेजित करने की अपार क्षमता रखते थे।
26 जून 1838 को बंगाल में जन्मे, ये एक निर्भय और तीव्र बुधि बालक थे। पढ़ाई पूरी होने पर उन्होंने एक अंग्रेजी कार्यालय में नौकरी की परंतु अंग्रेजों के प्रति उनका क्रोध उनकी कथाओं में झलकने लगा। उन्होंने बंगाली भाषा के उत्थान के लिए कई उपन्यास व कथाएँ रचीं। बंगाली में ‘बांगादर्शन’ नामक मासिक पत्रिका की शुरुआत की।
‘आनंदमठ’ नामक उपन्यास में उन्होंने ब्रिटिश राज के प्रति अपनी वैर भावना प्रस्तुत की है। उस समय स्वतंत्रता के लिए छिड़ी लड़ाई में इस उपन्यास ने आग में घी के समान कार्य किया।
इसी में प्रयुक्त ‘वंदे मातरम’ भारत का नारा बन गया। बंकिम ने अपना पूरा जीवन सामाजिक और राजनैतिक विषयों पर लेख लिखे। भारत में प्रचलित प्रथाएँ जैसे बाल-विवाह, सती इत्यादि पर भी उन्होंने कलम से निरंतर वार किए।
‘‘राय बहादुर” की उपाधि से सम्मानित बंकिमचंद्र 8 अप्रैल 1894 में चिर निद्रा में सो गए।
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