Hindi Story, Essay on “Lalach Buri Bala Hai”, “लालच बुरी बला है” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

लालच बुरी बला है

Lalach Buri Bala Hai

निबंध नंबर : 01 

अमर, लता और उनके मम्मी-डैडी एक शादी समारोह में गए थे। वहाँ से खाना खाकर घर लौटे ही थे कि अमर को उल्टियाँ शुरू हो गईं। “अरे बेटा, क्या हुआ? अमर उल्टी क्यों कर रहा है?” दादाजी ने आवाज लगाई।

लता भागती हुई दादाजी के पास गई और बोली-“दादाजी! पता है, अमर को उल्टियाँ क्यों हो रही हैं? उसने ढेर सारा खाना खा लिया। समझ लो, कुछ भी नहीं छोड़ा। उसने लालच में आकर चाट-पकौड़ी, हलवा, पूरी-सब्जी, गुलाब जामुन और आइसक्रीम खाने के बाद गरम-गरम कॉफी भी पी ली। मम्मी ने तो बहुत मना किया था, लेकिन वह नहीं माना। खाता ही रहा।” “अच्छा बेटा! चलो, पहले अमर को देख लेते हैं।” कहते हुए दादाजी उठे और अमर के पास गए। वह पलंग पर लेटा हुआ था। उन्होंने अमर के सिर पर हाथ फेरा और बोले-“अमर बेटा! खाने-पीने के मामले में लालच करना अच्छी बात नहीं है। इससे तबीयत खराब हो जाती है।

वैसे तो लालच किसी चीज का हो, लालच बुरी बला है। इस पर मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।” दादाजी बोले-4 भोला एक बहुत ही गरीब आदमी था। वह मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार की गुजर-बसर करता था। उसे मुश्किल से दो वक्त का खाना मिल पाता था। वह हर समय भगवान् को याद करता रहता और प्रार्थना करता कि उसकी गरीबी दूर हो जाए। वह सुबह-शाम अपने घर के एक कोने में रखी भगवान की मूर्ति के सामने पूजा करता था। वह सप्ताह में एक बार प्रत्येक मंगलवार को उपवास रखता था। मंदिर में जाकर भजन-कीर्तन सुनता था।

एक रात उसने सपने में देखा कि उसके सामने एक देवदूत खड़ा है। देवदूत का चेहरा चमक रहा था। उसके एक हाथ में मिट्टी का घडा था। देखते ही भोला ने हाथ जोड़ लिए और सिर झुकाकर प्रणाम किया। देवदूत बोले-‘भोला, भगवान् तुम्हारी भक्ति और भोलेपन से बहुत खुश हैं। भगवान् ने तुम्हें वरदान दिया है। ये लो करामाती घड़ा और एक सोने का सिक्का। जब तुम इस घड़े में यह सोने का सिक्का डालोगे, तो एक से दो सिक्के हो जाएँगे। जब दोनों सिक्के निकालकर फिर घड़े में डालोगे. तो चार हो जाएँगे। इस तरह, इस घड़े में तुम जितने सिक्के डालोगे, वो दुगने हो जाएँगे। लेकिन याद रखना कि जब भी घड़ा आधे से ज्यादा भरेगा, तब यह फूट जाएगा। और फिर जमीन पर गिरते ही सारे सिक्के मिट्टी के हो जाएँगे। लो यह घड़ा और सोने का सिक्का।’ यह कहते हुए देवदूत ने घड़ा और सोने का सिक्का भोला की तरफ बढ़ाया। भोला ने आगे बढ़कर घड़ा और सिक्का ले लिया और उसी वक्त उसकी आँख खुल गई।” कहते-कहते दादाजी कुछ देर चुप रहे। । “फिर क्या हुआ, दादाजी?” अमर ने पूछा।

“बेटा, फिर भोला ने अपनी आँखें मलीं। उसने चारों तरफ देखा। वहाँ कोई देवदूत नहीं था। लेकिन उसके सिरहाने मिट्टी का एक घड़ा और सोने का एक सिक्का रखा हुआ था। भोला ने सारी बात अपनी पत्नी को बताई. दोनों ने नहा-धोकर पूजा-पाठ किया और सोने का सिक्का घड़े में डाल दिया। फिर क्या था! घड़े में दो सिक्के दिखाई दिए। भोला ने दोनों सिक्के निकालकर घड़े में डाल दिए, तो चार हो गए। इस तरह करते-करते आधा घड़ा सिक्कों से भर गया। भोला को देवदूत की बात याद आ गई। उसने घड़े में से कुछ सिक्के निकाल लिए। फिर थोड़े-थोड़े सिक्के घड़े में डालता रहा। सिक्के बढ़ने के साथ-साथ उसका लालच भी बढ़ता जा रहा था। वह घड़े में सिक्के डालता रहा, डालता रहा। जैसे ही आधे से ज्यादा घड़ा सिक्कों से भर गया, वैसे ही मिट्टी का घड़ा तड़ाक से फूट गया। सारे सिक्के जमीन पर बिखर गए और मिट्टी के हो गए। यह देखकर भोला अपना सिर पीटकर रोने लगा। लालच में आकर उसने सारा धन आँवा दिया। इसीलिए कहते हैं कि लालच बुरी बला है।”

कहानी सुनकर अमर और लता बहुत खुश हुए।

निबंध नंबर : 02 

लालच बुरी बला है

Lalach Buri Bala Hai

यूनान में पुराने समय में मीदास नाम का एक राजा राज करता था। राजा बहुत ही लालची था। उसे संसार में केवल दो ही वस्तुएँ प्यारी थीं-एक तो उसकी एक मात्र पुत्री तथा दूसरा सोना। वह रात में भी सोना इकट्ठा करने के स्वप्न देखता रहता था।

एक दिन राजा मीदास अपने खजाने में बैठा सोने की ईंटें और अशर्फियाँ गिन रहा था। अचानक वहाँ एक देवदूत आया। उसने राजा से कहा- “मीदास! तुम बहुत धनी हो।”

मीदास ने मुँह लटका कर उत्तर दिया-“मैं धनी कहाँ हूँ! मेरे पास तो केवल यह थोड़ा-सा सोना है। दुनिया में अनेक व्यक्ति मुझसे कहीं अधिक अमीर हैं।”

देवदत बोला-‘तो तुम्हें अपने सोने पर संतोष नहीं? बताओ कितना सोना चाहिए तुम्हें?

राजा ने कहा- ‘मैं तो चाहता हूँ कि जिस वस्तु को भी मैं स्पर्श करूँ, वह सोने की हो जाए।” देवदूत हँसा और बोला, “अच्छा! कल सवेरे से तुम जिस-जिस को भी छुओगे, वही सोना बन जाएगी।”

राजा मीदास आशीर्वाद पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह रात भर सोया ही नहीं। वह बड़े सवेरे उठा। उसने एक कुर्सी पर हाथ रखा, वह सोने की हो गई। राजा मीदास प्रसन्नता के मारे उछलने और नाचने लगा। वह पागलों की भाँति दौड़ता हुआ अपने बगीचे में गया और पेड़ों को छूने लगा जैसे ही उसने फूल, पत्ते, डालियाँ, गमले छुए, वे सब सोने के हो गए। अब मीदास के पास सोने की कमी न थी।

दौड़ते-उछलते मीदास थक गया था। वह प्यासा था और उसे भूख भी लगी थी। राजमहल में आकर एक सोने की कुर्सी पर बैठ गया। सेवक ने भोजन और पानी लाकर रखा। जैसे ही मीदास ने भोजन और पानी को स्पर्श किया, सब सोना बन गया। मीदास भूखा-प्यासा था। सोना उसकी भूख नहीं मिटा सकता था।

मीदास रो पड़ा। उसी समय उसकी प्यारी पुत्री खेलते हुए वहाँ आयी। पुत्री जैसे ही पिता की गोद में आयी, सोने की मुर्ति में बदल गयी। बेचारा मीदास सिर पीट-पीटकर रोने लगा। देवदूत को मीदास पर दया आ गई। वह पुनः प्रकट हुआ। देवदूत को देखते ही मीदास उसके पैरों में गिरकर गिड़गिडाने लगा, “आप अपना वरदान वापस लौटा लीजिए। मुझे सोना नहीं चाहिए।”

देवदूत ने पूछा-“अब बताओ मीदास! एक गिलास पानी मूल्यवान है या सोना। रोटी का एक मीदास हाथ जोड़कर कहने लगा, “मुझे सोना नहीं चाहिए।” “अब मैं जान गया हूँ, मनुष्य को सोना नहीं अन्न और पानी चाहिए।” “अब मैं कभी सोने की मांग नहीं करूंगा।”

देवदूत ने एक कटोरे में जल दिया और कहा-“इसे सब पर छिड़क दो। मीदास ने जैसे ही उस जल को अपनी पुत्री, मेज, कुर्सी, भोजन, जल, बगीचे आदि पर छिड़का, सब पहले जैसे ही हो गए।

शिक्षा-लालच बुरी बला है।

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