गरजते बादल बरसते नहीं
Jo Garajte hai wo Baraste nahi
एक दिन अमर और लता दादाजी के साथ बाजार से घर लौट रहे थे। तभी रास्ते में एक काला कुत्ता उनके पीछे जोर-जोर से भौंकता हुआ चला आ रहा था। उसे देखकर अमर और लता डर गए और दादाजी से बोले-“दादाजी, जल्दी चलो। यह काला कुत्ता भौंकता हुआ हमारी तरफ ही आ रहा है। कहीं काट न ले।” “अरे बच्चो, डरो नहीं। यह हमें डराने के लिए ही जोर-जोर से हैं। है। कुछ नहीं करेगा। जो बादल गरजते हैं, बरसते नहीं ।” दादाजी ने ढाढ़स बँधाया।
घर पहुँचकर अमर और लता ने दादाजी से पूछा-“दादाजी, गरजने वाले बादल बरसते नहीं, ऐसा आपने कहा था। इसके बारे में भी कोई कहानी है क्या?”
“हाँ-हाँ, क्यों नहीं? सुनना चाहते हो क्या?” दादाजी ने कहा। अमर और लता ने दादाजी से कहानी सुनाने की फरमाइश की। दादाजी ने कहानी शुरू की पावन नामक देश का एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुख और शांति से रहती थी। लोग अपने देश के विकास के लिए ईमानदारी से कड़ी मेहनत करते थे। परंतु पड़ोस में पतन देश के राजा को इससे बहुत जलन होती थी। इसलिए वह आतंकवादियों को ट्रेनिंग देकर पावन राज्य में आतंक और डर फैलाने के लिए भेज देता था। वहाँ जाकर आतंकवादी निर्दोष लोगों को मार डालते थे। सरकारी इमारतों और बड़े-बड़े कारखानों को विस्फोट से उड़ा देते थे।
“पावन देश में आतंकवादी घटनाएँ बढ़ती जा रही थीं। यह देखकर राजा को बहुत गुस्सा आया। उसने पतन देश के राजा को सबक सिखाने की ठान ली। उसने अपनी सेना इकट्ठी की और पड़ोसी राज्य पर आक्रमण करने के लिए कूच कर दिया। हाथी, घोड़ों, तोपों आदि के साथ सेना रात के अँधेरे को चीरती हुई आगे बढ़ रही थी। आकाश में घने बादल गए। अचानक बादलों से बिजली कड़कने लगी और जोर-जोर से गर्जन की आवाज सुनाई देने लगी। ऐसा लग रहा था मानो बादल फट जाएँगे। डरावना वातावरण बन गया था। यह देखकर सैनिक ठिठककर खड़े हो गए।
“राजा ने पीछे मुड़कर देखा और अपनी फौज को ललकारा-“ बहादुर सिपाहियो! यह तो बादलों की गर्जन की आवाज है। डरो नहीं, गरजते बादल बरसते नहीं। कुछ नहीं होगा। आगे बढ़ो!’ अपने राजा की बात सुनकर सैनिकों का हौसला बढ़ा और वे कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते रहे। पड़ोसी राज्य की सीमा पर पहुँचकर उन्होंने पूरे जोश के साथ हमला बोल दिया। सभी आतंकवादी ठिकानों का सफाया कर दिया। पतन देश के राजा को बंदी बनाकर उसके महल के ऊपर अपने देश का झंडा फहरा दिया।” दादाजी ने कहानी पूरी की कहानी सुनकर अमर बोला-“दादाजी, हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि थोड़ी-बहुत मुसीबत आने पर हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। बल्कि ठंडे दिमाग और सूझ-बूझ से उसका सामना करना चाहिए।”
शाबाश बेटे! तुमने बिलकुल ठीक कहा। कुछ अवसरों पर मनुष्य ज्यादा ही डर जाता है और हथियार डाल देता है। हिम्मत के साथ संकट को दूर किया जा सकता है।” दादाजी ने समझाया।
Very Good Story.