Hindi Story, Essay on “Chor Chor Mosere Bhai”, “चोर-चोर मौसेरे भाई” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

चोर-चोर मौसेरे भाई

Chor Chor Mosere Bhai

अमर स्कूल से घर आते ही सीधा दादाजी के पास गया और बोला-“दादाजी. पता है आज हमारी क्लास में क्या हुआ?” “क्या हुआ बेटे?” दादाजी ने चौंककर पूछा। आज हमारी क्लास के कुछ बच्चे अपना होमवर्क करके नहीं लाए तो मैडम ने उन्हें बेंचों के ऊपर खड़ा कर दिया और कहा कि तुम सब चोर-चोर मौसेरे भाई हो। लेकिन दादाजी, उन्होंने तो कोई चोरी नहीं कीमैडम ने ऐसा क्यों कहा?” अमर ने पूछा। तभी वहाँ लता भी थी। फिर में भागती हुई आ गई।

“बेटे, जब कुछ लोग एक जैसा बुरा या गलत काम करते हैं, तो उन्हें चोर मौसेरे भाई कहते हैं। यह एक कहावत है। इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है, सुनोगे?” दादाजी बोले। “हाँ, दादाजी!” अमर और लता दोनों ने एक साथ कहा। दादाजी ने कहना शुरू किया-“ एक शहर में लोगों के घरों में बहुत चोरियाँ होती थीं। दिन हो या रात, जब भी मौका मिलता, चोर घरों में घसकर जेवर, रुपया-पैसा और कीमती सामान चुराकर भाग जाते। कभी-कभी चोर पकड़े भी जाते थे। एक दिन एक चोर रँगे हाथों पकड़ा गया। सिपाहियों ने उसे जेल में बंद कर दिया। जेल में पहले से ही कुछ चोर बंद थे। उस नए चोर को देखकर वे चिल्लाने लगे-“अरे दीपू भैया, तुम भी यहाँ!’ फिर वह चोर अपने साथियों के गले मिलने लगा। यह देखकर सिपाही ने पूछा-‘अबे, क्या तुम एक-दूसरे को जानते हो?’ तब एक चोर बोला-‘हाँ, जनाब! यह हमारा मौसेरा भाई है।

“कुछ दिनों बाद दो चोर एक घर में चोरी करते हुए पकड़े गए। सिपाहियों ने उन्हें भी जेल में बंद कर दिया। जेल में पहले से बंद चोरों ने उन्हें देखा तो चौंककर बोले-“अरे रामू भैया, श्यामू भैया! आप भी यहाँ आ गए’ इतना कहकर वे चोर उनके गले मिलने लगे। यह देखकर सिपाही फिर हैरान हो गया। उसने पूछा-“अबे, क्या तुम भी इन्हें जानते हो?’ तब दोनों नए चोर बोले-‘हाँ, जनाब! ये हमारे मौसेरे भाई हैं।

इस तरह जो भी चोर जेल में बंद किए जाते, वे एक-दूसरे को अपना मौसेरा भाई बताते। सिपाही ने यह बात थानेदार को बताई। थानेदार यह सुनकर हैरान हो गया। वह तुरंत चोरों के पास गया। उसने कड़कती आवाज में पूछा-‘क्यों बे, क्या यह सच बात है कि तुम सब मौसेरे भाई हो?’ तब एक चोर आगे आया और बोला-‘हाँ, हुजूर! हम सच कह रहे हैं। हम सबका पेशा चोरी है। इसलिए हमारी बिरादरी एक है। तो हम सब चोर आपस में मौसेरे भाई ही हुए न!’ उस चोर ने समझाते हुए कहा। वहाँ खड़ा हुआ सिपाही ये सब बातें ध्यान से सुन रहा था। अचानक उसके मुँह से निकल पड़ा-‘चोर-चोर मौसेरे भाई! चोरों ने यह रीत बनाई’ ।” दादाजी ने अपनी कहानी पूरी की तो अमर और लता ताली बजाकर जोर-जोर से हँसने लगे।

“दादाजी, हमारी क्लास में कुछ लड़कियाँ स्कूल का काम करके नहीं लातीं। मैडम उन्हें बहुत डाँटती हैं। वे भी तो चोर-चोर मौसेरी बहनें हुई न!” लता ने भोलेपन से कहा तो दादाजी मुस्कराने लगे।

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