Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Swami Dayanand”, “स्वामी दयानंद”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students.

स्वामी दयानंद

Swami Dayanand

“दयानंद स्वामी ने वैदिक धर्म का अलख जगाया।

वेदों का पावन संदेश जन-जन तक पहुँचाया।।”

भूमिका-इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारत के लोग जब अपनी धर्म-मर्यादा को छोड़ अपने पावन मार्ग से हट, स्वार्थ में लिप्त हो जाते हैं, तब किसी ऐसी महान विभूति का इस भारत में पदार्पण होता है जो अपने अतुल ज्ञान और उपदेश से अज्ञान के कारण भटके हुए लोगों को राह दिखाता है। स्वामी दयानंद का जन्म ऐसे ही समय में हुआ, जब चारों ओर आडंबर, ढोंग, दिखावा तथा रूढ़ियों का बोलबाला था।

जन्म और शिक्षा-स्वामी दयानंद का जन्म काठियावाड़ के मौरवी राज्य के टंकारा ग्राम में सन 1814 ई. में हुआ। आपके पिता अम्बाशंकर शिवजी के परम भक्त थे। इसी कारण उन्होंने आपका नाम मूल शंकर रख दिया।

घर पर ही आपने संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। यजुर्वेद आपको कंठस्थ हो गया। आपने ग्रंथों के आधार पर ब्रहमचर्य जीवन व्यतीत करने का निश्चय कर लिया।

जीवन में परिवर्तन-14 वर्ष की आयु में एक ऐसी घटना से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बुद्ध की तरह घर त्याग दिया। घटना इस प्रकार है-शिव-रात्रि का व्रत था। मूलशंकर भी अपने माता-पिता के साथ व्रत रखने वालों में से था। शिव दर्शन की प्रतीक्षा में मूलशंकर रात्रि को जागता रहा। अचानक एक चूहा शिव की प्रतिमा के ऊपर चढ़कर भोग की सामग्री को चट करने लगा। इससे मूलशंकर के मन में सच्चे शिव को खोजने की प्रेरणा उत्पन्न हुई।

गुरु की शरण में-सच्चे शिव और मृत्यु के रहस्य तथा वास्तविक स्वरूप को जानने के लिये भटकते हुए मूलशंकर मथुरा में स्वामी विरजानंद की शरण में गए, जहाँ से इन्होंने सच्चा ज्ञान प्राप्त किया। इन्होंने वेदों तथा अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया।

गुरु-दक्षिणा-गुरु दक्षिणा के समय आपने गुरु की इच्छानुसार सारा जीवन वेद प्रचार, देशोद्धार प्राचीन आर्य संस्कृति का प्रचार तथा मनुष्य मात्र की भलाई में अर्पण कर दिया और तब आप मलशंकर से दयानंद बन गए।

वेदों का प्रचार-हरिद्वार के कुंभ के मेले में आपने पाखंड खंडिनी पताका लहराई, आडंबरों का घोर विरोध किया तथा वैदिक संस्कृति और वेदों का प्रचार किया।

आर्य समाज की स्थापना-दयानंद ने कुरीतियों को नष्ट करने के लिये, वेदों के प्रचार और प्रसार के लिये आर्यसमाज की स्थापना की तथा वैदिक धर्म का पावन संदेश देश के कोने-कोने में फैलाया।

अनेक कठिनाइयों का सामना-आपके विचारों से जनता में खलबली मच गई। अनेक शत्रुयों ने आपको परेशान किया। गाली-गलौज़ साधारण बात थी। पत्थरों की वर्षा भी कभी-कभी हो जाती थी, परंतु क्रांति के दूत विष का प्याला पीकर भी जीवित रहे।

मृत्यु-शत्रु अंत में अपनी चाल में सफल हो ही गए। इधर जनता दीवाली मना रही थी उधर स्वामी जी की जीवन ज्योति महान ज्योति में मिल गई। 16 अक्तूबर, 1883 को जोधपुर के राजा के रसोइए ने इनके भोजन में विष मिला दिया, जिससे स्वामी जी की मृत्यु हो गई। मरते-मरते आपने अपने हत्यारे को भी क्षमा कर दिया।

उपसंहार-आर्य समाज आज भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के कोने-कोने में फैला हुआ है। आपके आदर्शों पर हिंदू समाज पुनः शक्तिशाली बनता जा रहा है। गांधी जी के विचार में स्वामी दयानंद भारत के आधुनिक ऋषियों में, सुधारकों में, स्वतंत्रता का मंत्र फूंकने वालों में एक ही थे। इन्होंने सर्वप्रथम गौ-वध का विरोध किया। सत्यार्थ प्रकाश आपकी प्रसिद्ध पुस्तक है।

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