Hindi Essay on “Vasant Ritu”, “वसन्त ऋतु”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

वसन्त ऋतु

Vasant Ritu

 

शिशिर ऋतु के समाप्त होते ही वसन्त का आगमन शुरू हो जाता है। भारतीय परम्परा के महीनों के अनुसार वसन्त ऋतु फाल्गुन मास से चैत्र तक चलती है। ये महीने अंग्रेजी परम्परा में मार्च और अप्रैल के महीने होते हैं लेकिन फरवरी के समाप्त होने से पहले ही वसन्त के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

वसन्त ऋतु आने पर खेतों में फूली हुई पीली सरसों (फसल) लहलहा उठती है।

जब वसन्त पंचमी का दिन आता है तो लोग पीले रंग के कपड़े पहनकर हृदय का उल्लास प्रकट करते हैं। इस दिन वसन्ती रंग के हलुवे, पीले चावल (मीठे) तथा केसरिया रंग की खीर का आनन्द लिया जाता है।

वसन्त-पंचमी का दिन वसन्त ऋतु के प्रथम उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों में विद्या और कला की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती माँ का पूजन होता है।

वसन्त-पंचमी का दिन विद्याभ्यास के श्रीगणेश का मंगल दिसव होता है। इस दिन सुबह के समय विद्यालय के बालक-बालिकाएँ सरस्वती माँ की निम्न प्रकार से आराधना करते हैं:-

या कुन्देदुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,

या वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना,

या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिर्देवैः सदा वन्दिता,

या मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।”

शास्त्रों में वसन्त की व्याख्या के लिए निम्म उक्ति है:-

वसन्त्यास्मिन् सुखानि ।”

इसका मतलब यह है कि जिस ऋतु में प्राणियों को ही नहीं बल्कि वृक्ष,

लता आदि को भी आह्लादित करने वाला मधुरस प्रकृति से प्राप्त होता है; उसको ‘वसन्त’ कहते हैं।

महाकवि कालिदासजी ने निम्न शब्द कहकर वसन्त ऋतु का अभिनन्दन किया है:-

सर्वप्रिये चारुतरं वसन्ते

वसन्त ऋतु के समय सूरज भूमध्य रेखा के ठीक सामने या आस-पास का जाता है। इस ऋतु में बिना बरसात के ही वृक्ष, लता आदि पुष्पित हो जाते हैं। आम, महुआ तथा पलाश के वृक्ष इस मौसम में खूब फलते फूलते दिखाई देते हैं। वसन्त ऋतु के सम्बन्ध में विभिन्न कवियों की निम्नलिखित पंक्तियाँ ध्यान देने योग्य है:-

  • बिहारी कवि

छवि रसाल सौरभ सने, मधुर माधवी गन्ध।

ठौर-ठौर झूमत झपत, भौंर भौंर मधु अन्ध।।

      (2) निराला कवि

सखि! वसन्त आया

किसलय बसना नववय लतिका,

मिली मधुर प्रिय-उर तरु पतिका,

मधुप वृन्द वृन्दी पिक-स्वर नभ सरसाया!

सखि! वसन्त आया!

     (3) केदार नाथ अग्रवाल

विकराल वनखण्डी

लाजवन्त दुलहिन बन गई

फूलों के आभूषण पहन आकर्षक बन गई।

(वसन्त के आने पर)।

वसन्त ऋतु आने पर कमल का पुष्प अपने भरपूर यौवन के साथ खिल उठता है। आम वृक्ष पर बौर आने लगती हैं। इसके अलावा रात की रानी, मालती, करोंदा, रजनीगन्धा, कनेर, गुलाब, हरसिंगार तथा कर्मफुला पौधों के पुष्प महकने लग जाते हैं।

वसन्त पंचमी के दिन शहीद हकीकत राय की याद में मेले लगाए जाते हैं। वसन्त पंचमी के ही दिन बालक हकीकत राय का मुस्लिम धर्म स्वीकार न करने के कारण बलिदान हुआ था।

भारत में जहाँ-जहाँ वसन्त पंचमी के मेले लगते हैं, वहाँ नृत्य, संगीत, खेलकूद, पतंगबाजी तथा तरह-तरह की प्रतियोगिताओं का अयोजन किया जाता है।

वसन्त ऋतु को ‘मधुक्रतु’ और ‘ऋतुराज’ कहकर पुकारा जाता है।

कालिदास ने वसन्त ऋतु के उत्सव (वसन्त पंचमी) को ‘ऋतु उत्सव’ माना है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीजी वसन्त ऋतु को ‘मादक उत्सवों का काल’ कहते हैं।

कुल मिलाकर वसन्त ऋतु स्वास्थ्यप्रद है। इस ऋतु की शीतल-मन्द-सुगन्ध समीर शरीर को नीरोगी कर देती है। यदि वसन्त ऋतु के मौसम में सुबह उठकर सड़क पर कुछ देर घूम-फिर लिया जाए और कुछ व्यायाम आदि किया जाए तो हमारा शरीर हमेशा के लिए नीरोगी बन सकता है।

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