Hindi Essay on “Varsha Ritu”, “वर्षा ऋतु”, Hindi Essay for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

वर्षा ऋतु

Varsha Ritu

निबंध नंबर :- 01

हर व्यक्ति को अलग-अलग ऋतु पसंद आती है। मेरी प्रिय है – वर्षा ऋतु । मई-जून की चुभती गरमी से धरती तप जाती है, पौधे और जीव झुलस जाते हैं। ऐसे में जुलाई माह में वर्षा सबको प्रसन्न करती है। बादलों की सेना गरजते हुए आकाश में छा जाती है और ठंडी हवाएँ गीत सुनाने लगती हैं। ऐसे में मोर की आवाज़ और उसका नाच देखते ही बनता है।

वर्षा के आने से पूरी धरती नहा उठती है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। सड़के भी धुली हुई लगती हैं। तालाबों, नदियों में उमड़-उमड़ कर पानी  बहने लगता है। पेड़ों में नए अंकुर फूटते हैं। मेंढक टर्राते हैं और कई प्रकार के कीड़े भी नजर आने लगते हैं।

वर्षा के बाद सात रंगों का इंद्रधनुष भी आकाश में नज़र आता है। वर्षा में चाय-पकौड़े बहुत स्वादिष्ट लगते हैं।

वर्षा नए जीवन का संदेश ले कर आती है। अधिक वर्षा से कई स्थानों में बाढ़ आ जाती है। कई बीमारियाँ जैसे हैजा भी फैलने लगता है। अत: वर्षा में खाने-पीने का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

मुझे वर्षा में भीगना बहुत अच्छा लगता है।

 

निबंध नंबर :- 02

वर्षा ऋतु

Varsha Ritu

 

भूमिका- सूर्य देवता आग बरसा रहे थे। भूमि गर्मी से जल रही थी। गर्मी के कारण सांस लेना कठिन हो रहा था। वन को झुलसाने वाली लू चल रही थी। पुरवैया चली। कलियों ने आँखें खोली। मोर शोर मचाने लगे। आसमान काले-काले बादलों से घिर गया। वर्षा की बूदें टपकने लगी। देखते-देखते नदी नाले सभी जल से भर गए। वृक्षों पर धूल नजर नहीं आती थी, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई देने लगी। रात की रानी अपनी मधुर महक से मानव मात्र के मन को मोहित करने लगी। वर्षा का आगमन हो गया। आमों में रस भर गया। जामुन भी रस से भर गई।

वर्षा ऋतु का आरम्भ- वर्षा ऋतु का आरम्भ आषाढ़ मास से होता है। इसे चौमासा भी कहते हैं। ड्रेस ऋतु में लोग यात्रा पर जाना अच्छा नहीं मानते। प्राचीनकाल में साधुजन और राजा आदि भी इस ऋतु में देश भ्रमण या आक्रमण के लिए प्रस्थान नहीं करते थे। यह सत्य है कि यदि वसन्त ऋतुराज है तो वर्षा ऋतुओं की रानी है। वर्षा के बिना जीवन असम्भव है। वर्षा ही खेतों में अनाज पैदा करती है। व, ऋतु का अपना महत्त्व है। वर्षा होने से खेतों की सिंचाई होगी और फसल पैदा होगी। अनाज पैदा होगा, लोग खुशी से झूमेंगे, भरपेट खाएंगे। महंगाई कम होगी। नदी-नाले, सर-सरोवर जल से भर जाएंगे। धरती धुल जाएगी तथा कूड़ा-कचरा बह जाएगा। जलवायु स्वच्छ और पवित्र होगी। आमों में मीठास आ जाएगी। वर्षा न हो तो किसान की सब योजनाएं धरी रह जाती है। विद्युत तो भी पानी से ही उत्पन्न की जाती है। गर्मियों में पानी ही जिन्दगी है और खेती बूड़ी के लिए भी जल परम आवश्यक है। जल के अभाव से खेती हरी भरी नहीं रह सकती। समय पर यदि वर्षा हो जाए तो देश में अन्न का संकट टल जाता है। अच्छी फसल किसान के लिए वरदान सिद्ध होती है।

वर्षा ऋतु जहाँ प्राणी मात्र के लिए वरदान सिद्ध हुई है, वहाँ वर्षा के कारण नगरों, गाँवों में बाढ़ का पानी भर जाता है। जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। यहाँ तक कि यातायात भी प्रभावित हो जाता है। अधिक वर्षा फसलों के लिए हानिकारक है। चारों तरफ गन्दगी फैल जाती है। जल के स्थिर रहने से दुर्गन्ध आती है और अनेक रोग फैलने का भय रहता है।

वर्षा में प्रकृति की रमणीयता- वर्षा ऋतु के आने पर गर्मी का प्रकोप शान्त होता है। किसान बैलों को लेकर खेत में हल जोतने के लिए जाते हैं। वर्षा का स्वागत सभी लोग खुशियों से करते हैं। बच्चे वर्षा ऋतु में गलियों में निकलकर नहाते हैं। वर्षा ऋतु भी चचला जैसी है। वर्षा ऋत में प्रकृति की शोर देखने योग्य होती है। अभी चमकती धूप थी और देखने ही देखने आकाश बादलों से घिर जाता है और छम-छम बारिश होने लगती है। आकाश में बादलों को देखर मोर भी नाचना आरम्भ कर देता है। वर्षा को कारण सब जगह जल ही जल दिखाई देता है। लोग बरसात में बिना छतरी के नहीं निकलते। धूल खतम हो जाती है और ठंडी-ठंडी हवा बहनी शुरू हो जाती है। वर्षा में जुगनू चमकने लगते हैं। वर्षा ऋतु में बादलों से भरे आकाश में सात रंगों का इन्द्र धनुष देखकर चित प्रसन्न हो उठता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि वर्षा ऋतु का भारतवर्ष में अत्यन्त महत्त्व है। बच्चे उस दिन मां को कहकर खीर और मालपुए बनवाते हैं। वर्षा में खीर खाने का बड़ा महत्त्व है। तीज का त्योहार भी इसी ऋतु में मनाया जाता है। इस त्योहार में स्त्रियां नाचती हैं और बोलियां गाती हैं। परन्तु जैसे ही वर्षा खत्म होती है तो धूप निकल आती है, उमस बढ़ जाती है। शरीर पर चिनगिया सी फूटने लगती हैं जिसे पित्त कहते हैं। ज्येष्ठ-आषाढ़ के दिन घर में बिताने चाहिए और सावन भादों के दिन नदी के किनारे वृक्षों की छाया में। सावन और भादों के इन दो महीनों में झूले पड़ जाते हैं और युवतियां झूला झूलती हुई मधुर कण्ट में गाने लगती हैं। ऋतुओं की रानी वर्षा बच्चों को विशेष प्रसन्नता देती है। वर्षा में चाहे कितने भी दोष हों पर लोग बहुत खुशी मनाते हैं।

उपसंहार- वर्षा में प्रकृति भी नयी दुल्हन के समान सजी हुई होती है (नीला आकाश जोबादलों से घिरा हुआ है, मानो प्रकृति की नीली साड़ी है। इस ऋतु से सब प्रसन्न होते हैं, नहीं प्रसन्न होती तो केवल वियोगिनी। वर्षा ऋतु में पहाड़ों का दृष्य सुन्दर और सुहावना होता है। एक ओर वर्षा और उसके आने से अनेक लोग व्याकुल भी हो जाते हैं। फुटपाथ, सड़कों, जोंपड़ियों और झुग्गियों में जीवन व्यतीत करने वाले निर्धन लोग कठिनाई से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वर्षा के कारण कीचड़ भी हो जाता है और इससे मच्छर भी पैदा होते हैं। अनेक प्रकार के रोग फैलने का भय बना रहता है। अधिक वर्षा से मकान टूटते हैं, पुल बह जाते हैं, सड़कें टूट जाती हैं, यातायात में रुकावट पड़ती है तथा बाढ़ आने से बहुत नुकसान होता है। फसल बह जाती है। पशु मर जाते हैं। घरों की छतें गिर जाती हैं जिससे काफी जानी नुकसान भी होता है।

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