Hindi Essay on “Lala Lajpat Rai”, “लाला लाजपत राय”, Hindi Nibandh, Anuched for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

लाला लाजपत राय

Lala Lajpat Rai

 

भूमिका- भारतीय स्वतन्त्रता सग्राम के इतिहास में लाला लाजपतराय का नाम अत्यन्त आदर से लिया जाता है। पंजाब के लिए तो वे ‘केसरी’ थे। वे भारत रत्न थे। वे साहस और तेज की प्रतिभा थे। तभी तो उन्हें पंजाब का शेर कहा गया था। वे वास्तव में ही शेर थे। लाला जी का समस्त जीवन त्याग, बलिदान, निस्वार्थ सेवा और देश की आजादी के लिए लगा रहा। वे एक समाज सुधारक एवं राजनीतिक नेता थे।

जीवन परिचय- स्वतन्त्रता के इस पुजारी, आजादी के दीवाने पंजाब केसरी, लाला लाजपत राय का जन्म जिला फिरोजपुर के ढुढिके गाँव में सन् 1805 में लाला राधा कृष्ण अग्रवाल के घर हुआ। इसके पिता जगरावां के निवासी थे। वे रोपड़ के गर्वनमेन्ट स्कूल में अध्यापक थे। लाला जी ने 15 वर्ष की आयु में अम्बाला में मैट्रिक पास की। इसके बाद वकालत पास कर हिसार में वकालत आरम्भ की। लाला लाजपत राय के चार भाई और एक बहिन थी। उनका विवाह मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण करने से पूर्व ही 13 वर्ष की छोटी अवस्था में हो गया था। उनकी पत्नी राधा देवी हिसार के एक सम्पन्न अग्रवाल परिवार की कन्या थी। ।

देश भक्ति के राह पर- लाला जी आर्य समाजी विचारधारा के व्यक्ति थे। उनका पहला सराहनीय पग डी० ए० वी० कॉलेज की स्थापना था। लाला जी में देश सेवा और समाज सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने अनाथों के लिए अनाथालयों की स्थापना की। लाला जी सामाजिक क्षेत्र में जितने सफल थे उतने ही राजनीतिक क्षेत्र में भी सफल थे। लाला जी ने विदेशी सरकार का डट कर विरोध किया। सन् 1914 में इंग्लैंड जाकर भी उन्होंने अपने लेखों तथा भाषणों द्वारा अंग्रेजी सरकार की नीतियों की कटु आलोचना की। वहाँ उन्होंने हिन्दू महासभा की स्थापना की और लोगों में देश प्रेम की भावना जागृत की। अमेरिका जाकर उन्होंने ‘जंग इण्डिया’ नामक समाचार पत्र निकाला। सन् 1920 को लाला जी पुनः भारत लौट आए।

साईमन कमीशन का विरोध- लाला जी के जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना साईमन कमीशन का विरोध है। लाला जी ने साईमन कमीशन के बहिष्कार का झण्डा अपने हाथ में लिया। लाहौर के लाखों गैर-नारी उस समय उसके साथ थे। जलूस “साईमन कमीशन गौ बैक” के नारे लगाता हुआ आगे बढ़ रहा था। पुलिस ने जलूस को वापिस जाने के लिए कहा, “पर वीर लाला जी उनकी धमकियों से डरने वाले नहीं थे। मैजिस्ट्रेट ने लाठी चार्ज का हुक्म दिया। लाला जी की छाती पर लाठियां पड़ने लगीं पर वीर सेनापति डटा रहा। सांझ को लाहौर में शाहालमी दरवाजे पर भीड़ के सामने भाषण देते हुए लाला जी ने कहा, “मेरी छाती पर पड़ी हुई प्रत्येक लाठी भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी।” लाठियों के प्रहार से लाला जी जख्मी हो गए। परिणामस्वरूप 17 नवम्बर सन् 1928 को इस देश भकत का देहान्त हो गया। भगत सिंह आदि ने अंग्रेज अफसर को मार कर लाला जी की मौत का बदला लिया।

उपसंहार- वास्तव में सच्चे अर्थों में वही जीवित रहता है जिसके जीवन की एक-एक घटना आने वाली पीढ़ियों के उत्कृष्ट पथ पर चलने को प्रेरित करती है। लाला जी स्वाधीनता संग्राम के प्रबल सेनानी थे। उनका त्याग हम कभी भूल नहीं सकते।

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