Hindi Essay on “Hussainiwala me Shahidi Mela”, “हुसैनीवाला में शहीदी मेला”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

हुसैनीवाला में शहीदी मेला

Hussainiwala me Shahidi Mela

 

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।

वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा “

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के नाम स्वर्णम अक्षरों में अंकित हैं। इन तीनों क्रांतिकारियों ने अपनी युवावस्था में ही अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया था।यह 1928 की बात है।  अंग्रेजी सरकार हर प्रकार से भारतवासियों के स्वतंत्रता-आंदोलन को कुचलने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थी। कई काले कानुन बनाए गए थे। अंत में जब ब्रिटिश-साम्राज्य ने अनुभव किया कि अब भारतवासी बहुत अधिक समय तक उनके पराधीन नहीं रहेंगे तो उन्होंने 1920 के दशक के अन्तिम वर्षों में साइमन कमीशन का गठन किया।  जिसका कार्य यह देखना था। कि भारत में राज्य-सत्ता किस दल को सौंपी जाये। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस कमीशन का बहिष्कार किया तथा लाला लाजपतराय के नेतृत्व में 30 अक्तूबर 1928 को लाहौर रेलवे स्टेशन पर एक भारी प्रदर्शन हुआ। पुलिस ने लोगों पर लाठीचार्ज किया।

फलस्वरूप कुछ लाठियां लाला लाजपतराय को भी लगीं, जिनके आघात से उन्होंने कुछ ही दिनों बाद दम तोड़ दिया। इस घटना से भारत के नौजवानों में रोष की एक तीक्ष्ण लहर दौड़ गई। उन्होंने बदला लेने के लिए पुलिस सुपरिटेडेंट मिस्टर सांडर्स, जिसने लाठीचार्ज करवाया था, की 17 दिसम्बर 1928 को हत्या कर दी। भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद को इस हत्याकांड के लिए दोषी करार दिया गया। कुछ समय बाद ही भगत सिंह ने अपने कुछ अन्य साथियों के साथ सेन्ट्रल लैजिस्लेटिव असेम्बली हाल में बम फेंक कर धमाका किया ताकि अंग्रेजी शासन के बहरे हो गए कानों के पर्दे खुल जाएं। भगत सिंह तथा उसके साथी।    वहां से भागे नहीं, बल्कि उन्होंने स्वेच्छापूर्वक गिरफ्तारियां दी। सांडर्स के हत्याकांड में भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव पर मुकदमा चलाया गया।    तथा उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 23 मार्च 1931 को उन तीनों क्रांतिकारियों को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया।    और उनकी लाशों को उनके अभिभावकों को सौंपने की अपेक्षा गोपनीयता के साथ हुसैनीवाला है। डवर्क्स पर ले जाकर अग्नि भेंट कर दिया गया। यह स्थान 1961 तक पाकिस्तान के अधिकार में था।

बाद में यह भारतीय सीमा में मिला दिया गया। इस प्रकार सबसे पहली बार सन् 1961 में इन तीनों शहीदों की समाधि पर लोग श्रद्धांजलियां भेंट करने एकत्रित हुए।  इसके पश्चात् अब प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को इस स्थान पर मेले के रूप में भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों के लोग एकत्रित होते हैं तथा शहीदों को श्रद्धा-सुमन भेंट करते है। विभिन्न राजनीतिक पार्टियां अपने जलसे करती है। प्रत्येक वर्ष लगभग एक लाख लोग उस दिन यहां आते हैं। हुसैनीवाला फिरोजपुर शहर से केवल 10 किलोमीटर दूर है तथा भारत-पाकिस्तान सीमा के  बिल्कुल निकट है।

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